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पाकिस्तान से बंटवारे के तुरंत बाद बांग्लादेश में चला चरमपंथी आंदोलन, हिंदू चाहते थे अलग देश, अब क्या स्थिति? – history of separatist movement in bangladesh amid bangladesh crisis mdj

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पड़ोसी देश बांग्लादेश में आए राजनैतिक भूचाल का असर हर तरफ दिख रहा है. नई अंतरिम सरकार के बनने के बाद भी अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हिंसा हो रही है. ज्यादती का ये इतिहास पुराना है, जिसकी झलक हिंदुओं की कम होती आबादी में दिखती है. यहां तक कि हिंदू वहां एक अलग देश की डिमांड तक करते रहे हैं. 

भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान बना. मजहब के आधार पर हुए इस अलगाव से पूर्वी पाकिस्तान को काफी उम्मीद थी. उनकी आबादी ज्यादा थी और उन्हें लगता था कि इसी आधार पर उन्हें संसद में हक मिलेगा. लेकिन ऐसा होने में भाषा अड़ंगा बन गई. दरअसल पाकिस्तान ने उर्दू को आधिकारिक भाषा बना दिया, जबकि ईस्ट बंगाल में बांग्लाभाषी बसते थे.  

बात यहीं नहीं रुकी. पाकिस्तानी असेंबली में बांग्ला बोलने पर पाबंदी लगा दी गई, ये कहते हुए कि मुस्लिमों की भाषा उर्दू है. साथ ही बंगाली बोलने वालों के साथ हिंसा होने लगी. 

बंगाली आबादी के साथ असमानता इतनी बढ़ी कि पूरा का पूरा पूर्वी पाकिस्तान ही खुद को अलग-थलग पाने लगा. यहीं से बांग्लादेश की नींव पड़ी. आग में घी डालने का काम सत्तर के दशक में वहां आए साइक्लोन ने किया. भोला साइक्लोन में भारी संख्या में इसी इलाके के लोग मारे गए, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने उन्हें राहत देने में काफी हेरफेर की. 

history of separatist movement in bangladesh amid bangladesh crisis photo AP

इसके तुरंत बाद बांग्लादेश अलग होने के लिए भिड़ गया. खूब खून बहा. पाकिस्तान पर आरोप है कि उसने मानवाधिकार ताक पर रखते हुए जमकर वॉर क्राइम भी किए. आखिरकार भारत के दखल देने पर पाकिस्तानी सेना को सरेंडर करना पड़ा, और बांग्लादेश बन गया. ये बात है मार्च 1971 की. अब होना ये चाहिए था कि बोली-जबान के आधार पर अलग हुए लोग आपस में मिल-बांटकर रहें लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.

इस बार बांग्लादेश के भीतर रहने वाले हिंदू आरोप लगाने लगे कि उनके साथ बहुसंख्यक आबादी भेदभाव करती है. ऐसा हो भी रहा था. राजनीति से लेकर सामाजिक तौर पर वे निचले स्तर पर दिख रहे थे. पाकिस्तान बनने पर पूर्वी पाकिस्तान में हिंदू जनसंख्या 30 फीसदी थी, जो अब घटकर 8 प्रतिशत रह गई है. 

बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में एक नया आंदोलन सिर उठाने लगा. इसे नाम मिला- स्वाधीन बंग भूमि आंदोलन. वंगा या बंगा, गंगा किनारे बसा हुआ प्राचीन बंगाल था. इसी को लेते हुए आंदोलनकारियों ने तय किया वे बांग्ला बोलने वाले हिंदुओं का नया देश बनाएंगे, जिसका प्रस्तावित नाम था- बंग भूमि. साल 1973 में शुरू हुए आंदोलन में सबसे आगे वे लोग थे, जिन्होंने पाकिस्तान से अलगाव के दौरान अपनी ही भाषा बोलने वालों का अत्याचार सहा था. 

history of separatist movement in bangladesh amid bangladesh crisis photo- AFP

इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम किया बंग सेना ने. ये हिंदू प्रदर्शनकारियों का संगठन था, जिसकी अगुवाई कालिदास वैद्य और धीरेंद्र नाथ पॉल कर रहे थे. ये लोग बाकी प्रदर्शनकारियों की तरह अलग देश की मांग लेकर सड़कों पर उतरते कम ही दिखते थे. आरोप लगता रहा कि ये गुट अंडरग्राउंड होकर ज्यादा काम करता है. बांग्लादेश के अधिकारियों ने आरोप लगाया कि अलगाववादी पश्चिम बंगाल से जुड़कर काम कर रहे हैं और देश में अस्थिरता ला रहे हैं. 

ठीक दो दशक पहले बांग्लादेश राइफल्स के तत्कालीन डीजी मेजर जनरल जहांगीर आलम चौधरी ने कहा था कि बंग सेना एक्सट्रीमिस्ट गुट है.  उसी साल डीजी ने एक लिस्ट भी निकाली थी, जिसमें कथित तौर पर उन सारे चरमपंथियों के नाम थे, जो पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा से एंटी-बांग्लादेश एजेंडा चला रहे थे. 

इस प्रस्तावित देश में खुलना, जेसोर, कुश्तिया, फरीदपुर, बारीसाल और पटुआखाली जिले के काफी हिस्से थे. बाद में इसमें चटगांव भी शामिल हो गया. ये 20 हजार स्क्वायर मील है, जो पूरे बांग्लादेश का लगभग एक-तिहाई होता. 

history of separatist movement in bangladesh amid bangladesh crisis photo- Reuters

बात केवल अलग देश की कल्पना तक सीमित नहीं थी. इसके लिए बाकायदा नेशनल फ्लैग तक प्लान कर लिया गया. ये ग्रीन और भगवा रंग का मेल था, जिसमें सफेद रंग की सूरजनुमा आकृति बनी हुई थी. वक्त के साथ हिंदू आबादी काफी कम हो गई. अलगाववादी कुचले जाने लगे और इसके साथ ही अलग देश की चर्चा भी खत्म हो गई. हालांकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि अंदर ही अंदर अब भी चिंगारी सुलग रही हो. 

बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की बात करें तो यहां जनजातीय समूह भी काफी सारे हैं. इन्होंने भी एक समूह बनाया- पर्बत्या चटग्राम जन संहति समिति (PCJSS). चटगांव हिल्स और आसपास बसी आबादी लगातार आंदोलन करती रही. वैसे ये सीधे-सीधे अलग देश नहीं, बल्कि ऑटोनमी की मांग कर रहे थे.

पीसीजेएसएस की एक मिलिट्री विंग थी- शांति वाहिनी. ये अपने लड़ाकों को हथियारों की भी ट्रेनिंग देती. अलगाववादी युवक पहाड़ी इलाकों से छिपकर हमले करते थे, जिससे नव-नवेले बसे बांग्लादेश में अस्थिरता आने लगी. आखिरकार साल 1997 में तत्कालीन सरकार और पीसीजेएसएस के बीच एक समझौता हुआ. इसमें मिलिट्री विंग को खत्म कर दिया गया और ये संगठन एक्टिव पॉलिटिक्स में शामिल हो गया. बता दें कि उस समय भी अवामी लीग पार्टी की सरकार थी. अब भी ये पार्टी राजनीति में है और चटगांव हिल्स की जनजातियों के हक की बात करती है.

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