अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की सोलर डायनेमिक्स ऑब्जरवेटरी के वैज्ञानिकों ने 8 अगस्त 2024 को सूरज पर 24 घंटे के अंदर सैंकड़ों धब्बे (Sunspots) बनते देखे. कुछ धब्बे तो आकार में छोटे थे. लेकिन कुछ इतने बड़े थे कि उनमें पूरी धरती समा जाए. सूरज की सतह पर इतने धब्बे कभी हाल-फिलहाल में नहीं देखे गए. वह भी 24 घंटे में.
वैज्ञानिकों ने इन धब्बों के आसपास काफी ज्यादा तीव्र चुंबकीय क्षेत्र डेवलपर होते देखा है. यानी ये किसी भी समय धरती की ओर तेजी से सौर तूफान भेज सकता है. यानी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तूफान. जिससे धरती की ओजोन लेयर, सैटेलाइट्स, नेविगेशन सिस्टम और बिजली के ग्रिड्स को खतरा रहता है.
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अगर बड़े पैमाने का सौर तूफान आता है तो इससे अंतरिक्ष में भारी मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन की नई लहरें भेज सकता है. ये कोरोनल मास इजेक्शन (CME) की वजह से निकलने वाले सौर तूफान होंगे. NOAA के साइंटिस्ट शॉन डल ने कहा कि यह एक सोलर साइकिल है. औसत 11 साल की होती है.
जब सूरज मिनिमम से मैक्सिमम की ओर जाता है. यह सोलर साइकिल 25 है, जिसका सबसे तीव्र समय आना बाकी है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि साल 2025 में सोलर मैक्सिमम अपने चरम स्थिति पर होगा. इससे कई जियोमैग्नेटिक तूफान आएंगे. सूरज पर अक्सर धब्बे दिखते हैं, कई धब्बे तो 20-20 साल तक खत्म नहीं होते.
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क्या होते हैं सूरज के धब्बे… कैसे बनते हैं ये?
जब सूरज के किसी हिस्से में दूसरे हिस्से की तुलना में गर्मी कम होती है, तब वहां पर धब्बे बन जाते हैं. ये दूर से छोटे-बड़े काले और भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. एक धब्बा कुछ घंटों से लेकर कुछ हफ्तों तक रह सकता है. धब्बों अंदर के अधिक काले भाग को अम्ब्रा (Umbra) और कम काले वाले बाहरी हिस्से को पेन अम्ब्रा (Pen Umbra) कहते हैं.
क्या होते हैं सौर तूफान के क्लास?
इन दिनों सूरज काफी सक्रिय है. इससे जियोमैग्रेटिक तूफान आ रहे हैं. जिसे वैज्ञानिक भाषा में (M class) एम-क्लास और (X class) एक्स-क्लास के फ्लेयर्स यानी सौर लहर बोलते हैं. सूरज अगले 8 सालों तक इतना ही सक्रिय रहेगा. इस वजह से सौर तूफानों के आने की आशंका बनी रहेगी.
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लाखों km/hr की गति से आता सौर तूफान
सूरज पर बने धब्बे से कोरोनल मास इजेक्शन होता है. यानी सूर्य की सतह पर एक तरह का विस्फोट. इससे अंतरिक्ष में कई लाख किलोमीटर प्रति घंटे की गति से एक अरब टन आवेषित कण (Charged Particles) फैलते हैं. ये कण जब धरती से टकराते हैं तब कई सैटेलाइट नेटवर्क, जीपीएस सिस्टम, सैटेलाइट टीवी और रेडियो संचार को बाधित करते हैं.
नासा ने इसके लिए क्या किया?
आमतौर पर, सीएमई ज्यादा हानिकारक नहीं होते हैं. लेकिन नासा (NASA) हर समय सूर्य की निगरानी करता हैं. इसके अतिरिक्त, नासा का पार्कर सोलर प्रोब मिशन समय-समय पर सूर्य का चक्कर लगाते हुए उसकी सेहत की जानकारी देता रहता है. साथ ही सूर्य द्वारा बनाए गए धब्बों और अंतरिक्ष मौसम को बेहतर ढंग से समझ सकें.