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जख्मों से भरा जिस्म और प्राइवेट पार्ट से बहता खून… कोलकाता की निर्भया के साथ दरिंदगी के 40 मिनट की खौफनाक कहानी – Kolkata RG Kar Medical College trainee doctor Nirbhaya rape murder disclosure accused Sanjay Roy brutality inside story police crime pvzs

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Kolkata Trainee Doctor Murder Rape Case: 8 अगस्त की रात करीब 11 बजे कोलकाता की निर्भया का गुनहगार संजय रॉय पहली बार अस्पताल पहुंचा था. वो वहां करीब आधे घंटे तक रुका था. फिर अस्पताल से निकल गया था. इसके बाद दोबारा रात के 1 बजे वो अस्पताल पहुंचा. लेकिन इस बार वो सुबह 4 बजकर 35 मिनट पर अस्पताल से बाहर निकला और सीधे कोलकाता पुलिस के बैरक में जाकर सो गया. वो अस्पताल के उस सेमीनार हॉल में करीब 40 मिनट तक रुका था, जिस हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की खून से सनी लाश मिली थी. 

हर जख्म की अलग कहानी
दोनों आंखे घायल. मुंह से रिसता खून. घायल होठ. पूरा चेहरा जख्मी. गर्दन घायल. दोनों हाथों की उंगलियों के नाखून घायल. जख्मी प्राइवेट पार्ट से बहता खून. बांया पैर जख्मी. पेट घायल. दाहिने पैर की एड़ी जख्मी. दाहिने हाथ की रिंग फिंगर टूटी हुई. ये जख्मों की वो लिस्ट है जो कोलकाता की ट्रेनी जूनियर डॉक्टर के हिस्से आई है. जब ये लिस्ट ही कलेजा चीर रहा हो तो सोचिए अगर हर जख्म की कहानी. कहानी की तरह सुना दी जाए तो क्या होगा. खुद को और खुद की आबरू को बचाने के लिए जूनियर डॉक्टर ने तब तक लड़ाई लड़ी जब तक होश ने उसका साथ दिया और जब तक वो होश में रही. घायल होकर भी खुद को और खुद के आबरू को बचा ले गई थी. लेकिन जख्मों की लिस्ट इतनी लंबी थी कि वो दर्द और होश दोनों से हार गई. 

जख्मों से भरा जिस्म
अब वो वहशी उसे नजर भी नहीं आ रहा था. क्योकि जिस चश्मे को उसने पहन रखा था उस चश्मे का ग्लास भी टूट कर उसकी दोनों आंखों को घायल कर चुका था. आंखे बंद थी और वो बेहोश. और इसी बेहोशी के आलम में वो तब तक उसकी आबरू लूटता रहा जब तक उसकी सांसे थम नहीं गई. लेकिन वो इस कदर नशे में था कि उसे यही एहसास नही था कि जूनियर डॉक्टर जिंदा है भी या नहीं. डॉक्टर शोर ना मचाए इसलिए जब तक वो होश में रही वो उसका मुंह दबा कर उसकी चीखों को घोंटता रहा. फिर मौका मिला तो उसके वही हाथ उसकी गर्दन तक पहुंची. इस बीच कब गला घुंट गया उसे इसका भी एहसास नहीं था.

दिल दहला देगी डॉक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट
जूनियर डॉक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आ चुकी है. इस रिपोर्ट ने हर जख्म का हिसाब दे दिया. रिपोर्ट कहती है कि जूनियर डॉक्टर के जिस्म पर जितने भी जख्म मिले हैं, वो उसे तब मिले जब वो खुद को बचाने की कोशिश कर रही थी. इसी कोशिश में उसके चश्मे का शीशा टूटा था. जिसके टुकड़े उसके आंखों में धंस गए. दोनों आंखों से खून आने की यही वजह थी. चेहरे, नाक, मुंह पर जो जख्म थे, वो इसलिए आए क्योंकि आरोपी लगातार उसे काबू करने की कोशिश कर रहा था. रिपोर्ट के मुताबिक प्राइवेट पार्ट पर जख्म के निशान तब आए जब जूनियर डॉक्टर बेहोश हो चुकी थी और वो अपना गुस्सा उतार रहा था.

संजय ने आखिर क्यों किया डॉक्टर का कत्ल? 
पर जूनियर डॉक्टर के साथ संजय रॉय नाम के उस हैवान ने ऐसा क्यों किया? क्या संजय की जूनियर डॉक्टर से कोई दुश्मनी थी? क्या वो जूनियर डॉक्टर को हासिल करना चाहता था? या जूनियर डॉक्टर को लेकर उसकी नीयत खराब थी? इन सवालों के जवाब सामने लाने के लिए संजय की पूरी कहानी सामने लानी जरूरी थी. खासकर वारदात वाले दिन और उससे कुछ दिनों पहले तक. 

कोलकाता पुलिस वॉलेंटियर था संजय रॉय 
कोलकाता पुलिस के मुताबिक पिछले कुछ दिनों की संजय की रूटीन कुछ यूं थी. 5 अगस्त को संजय रॉय खड़गपुर के सलुआ में पुलिस वेलफेयर सोसायटी की एक मीटिंग में हिस्सा लेने गया था. असल में संजय रॉय कोलकाता पुलिस में एक वॉलेंटियर की तरह काम करता था. 2019 में संजय पहली बार कोलकाता पुलिस के आपदा प्रबंधन समूह में बतौर वॉलेंटियर शामिल हुआ. कोलकाता पुलिस अपने ऐसे सिविक वॉलेंटियर को हर महीने एक खास रकम दिया करती है. बाद में संजय रॉय आपदा प्रबंधन से पुलिस कल्याण डिपार्टमेंट में चला गया. 

अक्सर पुलिस बैरक में रुका करता था संजय
कुछ वक्त के बाद उसे वहां से आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल पुलिस चौकी में तैनाती दे दी गई. फिलहाल वो यहीं तैनात था. हालाकि वो सिर्फ एक वॉलेंटियर था लेकिन इसके बावजूद वो अपनी बाइक पर कोलकाता पुलिस का टैग लगाकर चलता था. यहां तक की वो केपी लिखी टी शर्ट और कैप भी पहना करता था. चुकी वो कोलकाता पुलिस के लिए ही काम करता था, इसलिए पुलिस के साथ उसके अच्छे संपर्क थे. इन्ही संपर्कों का फायदा उठा कर अक्सर पुलिस बैरक में भी रुका करता था. पुलिस का वॉलेंटियर होने के नाते ही वो 5 अगस्त को खड़गपुर के सलुआ में पुलिस वेलफेयर सोसायटी की मीटिंग में हिस्सा लेने पहुंचा था. जहां वो कुल तीन दिन रहा.

मरीजों को दाखिल कराने के पैसे लेता था संजय
सलुआ में तीन दिन रुकने के बाद 8 अगस्त की सुबह वो वापस कोलकाता पहुंचा. कोलकाता आने के बाद वो सबसे पहले आरजी कर हॉस्पिटल गया. संजय अक्सर सरकारी अस्पताल में मरीजों को दाखिला दिलाने के नाम पर एक दलाल की तरह पैसे भी वसूला करता था. 8 अगस्त को भी उसने इसी तरह एक मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया. भर्ती कराने के बाद वो अस्पताल से चला गया. इसके बाद वो पूरे दिन अस्पताल नहीं गया.

मरीज की मदद के लिए आया था संजय
8 अगस्त की ही रात करीब 11 बजे संजय वापस आरजी कर अस्पताल पहुंचता है. यहां वो उसी मरीज से मिलता है, जिसे दिन में उसने भर्ती करवाया था. अस्पताल आने के बाद वो उस मरीज की एक्सरे कराने में मदद करता है. एक्सरे कराते वक्त मरीज के रिश्तेदार भी साथ में थे. एक्सरे कराने के बाद संजय फिर से अस्पताल से बाहर निकल जाता है.

तीमारदार के साथ पी शराब
अब तारीख 8 से 9 अगस्त हो चुकी थी. देर रात करीब 1 बजे का वक्त था. संजय फिर से अस्पताल आता है. इस बार वो उस मरीज को देखने आता है, जिसे उसी ने भर्ती कराया था और जिसकी अगले दिन सर्जरी होनी थी. मरीज को अटैंड करने के बाद वो उसी मरीज के एक तीमारदार के साथ अस्पताल के बिल्डिंग के पिछले हिस्से में जाता है. वहां दोनों शराब पीते हैं. शराब पीने के बाद संजय उस तीमारदार को उबर बाइक से घर जाने के लिए पैसे देता है. वो तीमारदार अब अस्पताल से निकल जाता है.

नशे में लड़खड़ाता सेमिनार हॉल पहुंचा था संजय
अब रात के तीन बज चुके थे. तीमारदार को घर भेजने के बाद नशे में संजय फिर से अस्पताल की मेन बिल्डिंग में दाखिल होता है. इसके बाद वो बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर जाता है. इस फ्लोर पर चेस्ट मेडिसिन डिपार्टमेंट था. और इसी फ्लोर पर एक सेमिनार हॉल था. नशे में लड़खड़ाता संजय उसी सेमिनार हॉल में दाखिल हो जाता है. अंदर घुसते ही उसकी नजर उसी जूनियर डॉक्टर पर पड़ती है जो उस वक्त उसी सेमिनार हॉल में आराम करने के लिए आई थी और शायद सो रही थी. शराब का नशा पहले से था, ऊपर से तीसरी मंजिल सुनसान. सेमिनार हॉल में भी और कोई नहीं था.

3 बजे सेमिनार हॉल में आराम करने पहुंची थी डॉक्टर 
दरअसल, चेस्ट मेडिसिन डिपार्टमेंट में वो जूनियर डॉक्टर नाइट शिफ्ट में थी. तमाम मरीजों को देखने के बाद रात दो बजे अपने चार साथी डॉक्टरों के साथ कैंटीन में उसने खाना खाया. खाना खाने के बाद बाकी डॉक्टर मरीजों को देखने चले गए. चूकि उस वक्त जूनियर डॉक्टर के पास कोई काम नहीं था इसलिए थोड़ी देर आराम करने के वास्ते उसी सेमिनार हॉल में जाने का फैसला किया. असल में नाइट शिफ्ट के दौरान तमाम डॉक्टर और दूसरे मेडिकल स्टाफ अक्सर सुस्ताने के लिए उसी सेमिनार हॉल में चले जाया करते थे. क्योंकि वो रात को खाली रहता. और अंदर करीब 35 से 40 कुर्सियां लगी होती है. जूनियर डॉक्टर रात करीब 3 बजे सेमिनार हॉल में पहुंची और एक कुर्सी पर आराम करने लगी.

दरिंदगी के खौफनाक 40 मिनट 
बदनसीबी से कुछ देर बाद ही शराब के नश में अब संजय उसी सेमिनार हॉल में था और इसी हॉल में तमाम जद्दोजहद के बावजूद जूनियर डॉक्टर खुद को उसके चंगुल से आजाद नहीं कर पाई. संजय करीब 40 मिनट तक इस सेमिनार हॉल में रुका था. इसके बाद वो वहां से निकल जाता है. जब संजय अस्पताल से निकला तब सुबह के 4 बजकर 37 मिनट हुए थे.

वारदात के बाद पुलिस बैरक में जाकर सोया कातिल
कमाल देखिए, एक डॉक्टर की आबरू लूटने और उसकी जान लेने के बाद वो अस्पताल से निकल कर कहीं और नहीं जाता बल्कि करीब में ही मौजूद कोलकाता पुलिस के बैरक जाकर बेफिक्र सो जाता है. अब सुबह के करीब 8 बज चुके थे. ठीक इसी वक्त अस्पताल का एक स्टाफ तीसरी मंजिल के उस सेमिनार हॉल में दाखिल होता है.. वहां उसकी नजरों के सामने जूनियर डॉक्टर की लाश पड़ी थी. 

अर्धनग्न हालत में मिली थी डॉक्टर की लाश
थोड़ी ही देर में पूरे अस्पताल में हंगामा मच चुका था. कोलकाता पुलिस अब मौके पर पहुंच चुकी थी. मौके पर जूनियर डॉक्टर की लाश के साथ उसका लैपटॉप और मोबाइल पड़ा था. साथ ही एक ब्लूटूथ नेक बैंड. लाश पर ऊपरी कपड़े तो थे पर नीचे के नहीं. मामला एक सरकारी अस्पताल के अंदर एक जूनियर डॉक्टर के रेप और कत्ल का था. कोलकाता पुलिस अब अपनी तफ्तीश शुरु करती है. नाइट शिफ्ट में मौजूद तमाम स्टाफ से पूछताछ होती है. अस्पताल के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला जाता है. खासकर तीसरी मंजिल पर मौजूद सेमिनार हॉल की तरफ जाने और आने के रास्तों पर लगे हर कैमरों को बारीकी से चेक किया जाता है. और तब पहली बार उसी कैमरे में लड़खड़ाता संजय रॉय नजर आता है. कोलकाता पुलिस का अपना वॉलेंटियर.

सीसीटीवी फुटेज से मिला पहला सुराग
पुलिस को पहला क्लू इसी कैमरे ने दिया. दरअसल, पुलिस ने जब ध्यान से सीसीटीवी कैमरे को देखा तो पाया कि रात को जब संजय सेमिनार हॉल में गया, तब उसके गले में ब्लूटूथ नेकबैंड था लेकिन जब वो सुबह करीब 4 बजकर 35 मिनट पर सेमिनार हॉल से बाहर निकला तब गले में नेक बैंड नहीं था. और इत्तेफाक से जूनियर डॉक्टर की लाश के साथ पुलिस को एक नेक बैंड मिला था. अस्पताल के स्टाफ से ये पता करने में देरी नहीं लगी कि संजय पुलिस का ही वॉलेंटियर है और अक्सर पुलिस बैरक में ही रात गुजारता है. 

ब्लूटूथ नेकबैंड ने खत्म की शक की गुंजाइश 
फौरन पुलिस की एक टीम बैरक पहुंचती है. सोये हुए संजय को उठाया जाता है और पूछताछ के लिए थाने लाया जाता है. पर संजय से पूछताछ से पहले ही ब्लूटूथ नेकबैंड अपनी गवाही दे चुका था. मौके से मिला वो ब्लूटूथ नेकबैंड बड़ी आसानी से संजय के मोबाइल से कनेक्ट हो चुका था. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि मौके से बरामद ब्लूटूथ नेकबैंड संजय का ही है.

जांच के लिए भेजे डीएनए सैंपल
कोलकाता पुलिस संजय की गिरफ्तारी के साथ ही ये दावा कर देती है कि जूनियर डॉक्टर के रेप और कत्ल का मामला सुलझ गया है. लेकिन अब भी कोलकाता पुलिस पर शक करने लायक कई सवाल हैं. मसलन जूनियर डॉक्टर की कद काठी को देखते हुए संजय का उस पर अकेला काबू पाना लोगों के गले नहीं उतर रहा है. ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें पुख्ता यकीन है की जूनियर डॉक्टर को गुनहगार अकेला संजय नहीं बल्कि कुछ और लोग भी हैं. हालाकि इस सवाल के जवाब में कोलकाता पुलिस ने कहा है कि उसने जूनियर डॉक्टर और संजय दोनों के डीएनए सैंपल लैब में भेज दिए हैं. अगर जूनियर डॉक्टर के साथ जबरदस्ती करने वालों लोगों में संजय के अलावा और भी लोग शामिल हैं, तो डीएनए रिपोर्ट से साफ हो जाएगा.

(आज तक ब्यूरो)

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