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वारदात के 11 दिन, पुलिस के बाद CBI और जांच की उलझी परतें… अब भी अनसुलझे हैं कोलकाता कांड के कई राज़ – Kolkata RG Kar Hospital trainee doctor murder rape accused many theories unresolved questions secrets police CBI crime pvzs

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Kolkata Trainee Doctor Murder Rape Case: पूरे देश में गुस्सा, धरना-प्रदर्शन और आंदोलन के बीच एक रिपोर्ट ऐसी है, जो आसानी से ये बता सकती है कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज की जूनियर डॉक्टर की मौत की वजह नशे में डूबा एक अकेला वहशी संजय रॉय था या फिर मौत की साजिश और ज्यादा गहरी है. अगर फॉरेंसिक रिपोर्ट ये बता दे कि मामला रेप का है, तो केस बिल्कुल साफ है और संजय रॉय इस केस का इकलौता गुनहगार है. लेकिन अगर फॉरेंसिक रिपोर्ट इस मामले को गैंगरेप बताती है, तो पूरी कहानी और थ्योर ही बदल जाएगी. कुल मिलाकर कहा जाए तो ये मामला अभी भी रेप और गैंगरेप के बीच उलझा हुआ है, और सीबीआई को कई सवालों के जवाब तलाश करने है.   

9 अगस्त 2024, सुबह करीब 7 बजे
कॉल डिटेल रिकॉर्ड के मुताबिक ठीक यही वो वक़्त था, जब आरजी कर अस्पताल से अस्पताल के प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष के मोबाइल पर पहला फोन आया था. फोन करने वाला अस्पताल का ही एक स्टाफ था. उसने डॉक्टर घोष को पहली बार ये जानकारी दी कि चेस्ट मेडिसीन डिपार्टमेंट में तैनात ट्रेनी जूनियर डॉक्टर की लाश सेमिनार हॉल में पड़ी है. पूरी जानकारी देने के बाद फोन कट जाता है. अगले कुछ मिनटों में फोन करने वाला अब डॉक्टर घोष को व्हाट्स एप पर जूनियर डॉक्टर की लाश की तस्वीर भेजता है. लाश तब तक सेमिनार हॉल में ही पड़ी थी. डॉक्टर संदीप घोष आरजी कर अस्पताल से लगभग आधा घंटा की दूरी पर फूलबागान इलाके में रहते हैं. खबर मिलने के बाद ही वो अस्पताल जाने के लिए तैयार होने लगते हैं. 

उधर, सेमिनार हॉल में पड़ी लाश की खबर अब तक पूरे अस्पताल में फैल चुकी थी. तमाम डॉक्टर, जूनियर डॉक्टर, ट्रेनी डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ और यहां तक कि अस्पताल के बाकी कर्मचारी भी सेमिनार हॉल पहुंच चुके थे. लेकिन डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ होने और क्राइम सीन की अहमियत जानने के बावजूद हर कोई जाने अनजाने क्राइम सीन के सबूतों को अपने जूतों चप्पलों और हाथों के निशान से मिटाता रहा. लाश के इर्द गिर्द शायद ही ऐसी कोई चीज़ हो, जिस पर भीड़ ने अनजाने में अपनी निशानियां ना छोड़ी हों. ये वो पल था, जब मौका-ए-वारदात से सबूतों के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ हुआ. 

इधर, डॉक्टर संदीप घोष फोन पर जानकारी मिलने के बाद लगभग सुबह 8 बजे ही अस्पताल पहुंच चुके थे. वो भी सीधे सेमिनार हॉल में जाते हैं. जूनियर डॉक्टर की लाश अब भी वहां वैसे ही पड़ी थी. चूंकि अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों ने पहले ही नब्ज और धड़कनों से ये पता लगा लिया था कि जूनियर डॉक्टर अब जिंदा नहीं है, इसीलिए लाश अपनी जगह पर पड़ी रही. अस्पताल के अपने तमाम खास लोगों से बात करने के बाद डॉक्टर घोष ने पहली बार सुबह 9 बजे खुद ही पुलिस को जूनियर डॉक्टर की लाश की जानकारी दी. 

चश्मदीदों के मुताबिक सेमिनार हॉल में पहली बार सुबह 6 बजे लाश देखी गई थी. अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ. घोष को 7 बजे लाश की जानकारी मिली. जबकि उन्होंने सुबह 9 बजे पुलिस को फोन किया. यानी लाश देखे जाने के पूरे 3 घंटे बाद पहली बार पुलिस को लाश की जानकारी दी गई थी. 

9 अगस्त 2024, सुबह 10 बजकर 53 मिनट
यही वो वक़्त था, जब पहली बार आरजी कर अस्पताल से जूनियर डॉक्टर की मां को पहली बार फोन किया गया. यानी लाश मिलने के 4 घंटे और 53 मिनट बाद. फोन करने वाले ने बताया कि वो आरजी कर अस्पताल से बोल रहा है. इसके बाद उसने कहा कि आपकी बेटी अचानक बीमार पड़ गई है. इसके बाद फोन कट गया. घबराई मां ने फौरन उसी नंबर पर वापस कॉल किया और पूछा कि उसकी बेटी को क्या हुआ है. सामने से जवाब मिला आप फौरन अस्पताल आ जाइए. फोन फिर से कट गया. मां ने फिर उसी नंबर पर फोन मिलाया. इस बार फोन उठाने वाले ने कहा कि वो असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट बोल रहा है. आपकी बेटी ने खुदकुशी कर ली है. इतना कहते ही फोन फिर से कट जाता है. 

बेटी की खुदकुशी की खबर सुनते ही बदहवास मां बाप फौरन आरजी कर अस्पताल की तरफ भागते हैं. उनके घर से अस्पताल की दूरी करीब घंटे भर की थी. मां-बाप दोपहर 12 बजे के आसपास अस्पताल पहुंच चुके थे. लेकिन अस्पताल का कोई भी स्टाफ उन्हें उनकी बेटी से नहीं मिलवा रहा था. इस दौरान मां-बाप लगातार गिड़गिड़ाते रहे कि एक बार उन्हें उनकी बेटी का चेहरा तो दिखा दो, पर किसी ने नहीं दिखाया. 

9 अगस्त 2024, दोपहर 3 बजे
अस्पताल पहुंचने के करीब 3 घंटे बाद दोपहर 3 बजे पहली बार मां-बाप को उनकी बेटी की लाश दिखाई गई. जूनियर डॉक्टर की मां ने कहा कि उनकी बेटी की पैंट खुली हुई थी. पूरे जिस्म पर कपड़े का सिर्फ एक टुकड़ा था, हाथ टूटे हुए थे, आंख और मुंह से खून रिस रहा था. लाश देखते ही मौके पर ही मां ने डॉक्टरों से कहा ये सुसाइड नहीं मर्डर है. मेरी बेटी का क़त्ल किया गया है. 

लाश की हालत ही कुछ ऐसी थी कि उसे देख कर कोई भी ये आसानी से बता सकता था कि ये मर्डर है. तो फिर अस्पताल ने जूनियर डॉक्टर की मां से सुबह दो-दो बार झूठ क्यों बोला? पहला झूठ ये कि वो बीमार है और दूसरा कि उसने खुदकुशी की है. तो जिस असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट ने जूनियर डॉक्टर की मां से ये बात कही थी, उससे शुरुआत में जब कोलकाता पुलिस ने पूछताछ की तो उसने अपनी सफाई में ये कहा कि चूंकि डॉक्टर की मौत हो चुकी थी, इसीलिए वो घर वालों को सीधे ये सच्चाई नहीं बताना चाहते थे. इसीलिए उन्हें अस्पताल आने को कहा गया. 

पर यहां सवाल ये कि अगर डॉक्टर की मौत को ही छुपाना था, तो पहले कॉल में बीमार होने की बात कहने के बाद दूसरी बार खुदकुशी की बात क्यों कही? असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट के बाद इसका जवाब नहीं था. बाद में जूनियर डॉक्टर के पिता को वो सेमिनार हॉल भी दिखाया गया, जहां से उनकी बेटी की लाश मिली थी. पिता ने इल्जाम लगाया कि उन्हें शक है कि उनकी बेटी का क़त्ल सेमिनार हॉल में नहीं हुआ है, बल्कि उसे मारने के बाद लाश यहां लाकर फेंक दी गई.

9 अगस्त यानी शुक्रवार की शाम और रात तक जूनियर डॉक्टर की मौत की पूरी कहानी आरजी कर अस्पताल की चारदिवारी के अंदर ही थी. बाहर मीडिया के जरिए जो खबर आई, तब तक वो भी आधी अधूरी थी. कोलकाता पुलिस ने भी शुरुआती लम्हों में केस और केस की जांच को जिस तरीके से लेना चाहिए, वैसे लिया नहीं. लिहाजा शनिवार आते आते डॉक्टर की मौत और रेप की बातें धीरे-धीरे अस्पताल की चारदिवारी से निकल कर पहले कोलकाता और फिर पूरे देश में पहुंच गई. एक साथ दर्जनों थ्योरी हवा में तैरने लगी. 

धरना प्रदर्शन और आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले उसी आरजी कर अस्पताल से शुरू हुई, जहां जूनियर डॉक्टर की लाश मिली थी, लेकिन फिर देखते ही देखते पूरे देश के डॉक्टर इस आंदोलन में शामिल हो गए. अब ऊंगली अस्पताल प्रशासन से हट कर पहले ममता सरकार फिर कोलकाता पुलिस इसके बाद कोलकाता के पुलिस कमिश्नर की तरफ घूमने लगी. फिर बीच में कोलकाता हाई कोर्ट आ गया और आनन-फानन में मामला सीबीआई का सौंप दिया गया. सीबीआई की टीम भी फौरन दिल्ली से कोलकाता कूच कर गई और जांच शुरू कर दी.

पहले कोलकाता पुलिस ने की थी जांच
अब सवाल ये है कि सीबीआई क्या जांच कर रही है? और सवाल ये भी कि सीबीआई से पहले कोलकाता पुलिस ने क्या जांच की थी? तो पहले बात कोलकाता पुलिस की जांच की. क्योंकि जांच की शुरुआत कोलकाता पुलिस ने की थी. कोलकाता पुलिस के मुताबिक जब वो नौ अगस्त की सुबह सवा नौ बजे के आस-पास सेमिनार हॉल पहुंचे, तब वहां उसे जूनियर डॉक्टर की लाश के पास उसका मोबाइल फोन, लैपटॉप और एक ब्लूटूथ नेकबैंड मिला था. पर जूनियर डॉक्टर के मोबाइल से कनेक्ट करने पर पता चला कि ये ब्लूटूथ उसका नहीं, बल्कि किसी और मोबाइल से कनेक्टेड है. 

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से जांच की शुरूआत
इसके बाद सबसे पहले पुलिस ने अस्पताल की तीसरी मंजिल पर मौजूद सेमिनार हॉल के एंट्री और एग्जिट दरवाजे की तरफ जाने वाले तमाम सीसीटीवी कैमरों को खंगाला. सेमिनार हॉल के अंदर कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं था. लेकिन कुछ कैमरे ऐसे थे, जो सेमिनार हॉल की तरफ जाने वाले रास्तों पर लगे थे. इन कैमरों में कई लोग तीसरी मंजिल पर सेमिनार हॉल की तरफ जाने वाले कॉरिडोर में आते जाते नजर आए. कोलकाता पुलिस ने सबसे पहले उन्हीं से अपनी तफ्तीश शुरू की. 

संजय रॉय की गिरफ्तारी
पूछताछ में पता चला कि कैमरे में क़ैद एक शख्स के अलावा बाकी सभी अस्पताल के ही स्टाफ हैं. और वो इकलौता शख्स जो बाहरी था, उसका नाम संजय रॉय है. कोलकाता पुलिस का एक सिविक वॉलेंटियर. संजय रॉय बाद में अस्पताल के ही करीब पुलिस के एक बैरक में सोता मिला. बैरक से पुलिस ने उसके वो कपड़े बरामद किए, जो वो धुल चुका था. लेकिन उसके जूते पर खून के कुछ निशान मिले. संजय रॉय के मोबाइल से जब मौके से मिले ब्लूटूथ नेकबैंड को कनेक्ट किया गया, तो वो फौरन कनेक्ट हो गया. कोलकाता पुलिस को यकीन हो गया कि संजय रॉय ही कातिल है. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. 

उधर, डॉक्टरों का आंदोलन अब जोर पकड़ता जा रहा था. इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी सामने आ गई. रिपोर्ट में मौत की वजह गला घोंटना बताया गया. रेप या गैंगरूप की पुष्टि के लिए जूनियर डॉक्टर और संजय रॉय डीएनए सैंपल भी फॉरेंसिक लैब में भेज दिए गए. पर इसी बीच एक डॉक्टर ने ये बयान दिया कि जूनियर डॉक्टर के वेजाइना से व्हाइट लिक्विड मिला है, उन्होंने दावा किया कि म्यूकस और दो तीन चीजों को छोड़ दें, तो ज्यादातर लिक्विड सीमन है. इतनी बड़ी मात्रा में सीमन की मौजूदगी का हवाला देते हुए डॉक्टर ने दावा किया कि मामला रेप का नहीं, बल्कि गैंगरेप का है. 

डॉक्टर के इस बयान के बाद से ही गैंगरेप की थ्योरी हर तरफ घूमने लगी. फिर हुआ यूं कि कोलकाता पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद आनन-फानन में जूनियर डॉक्टर का अंतिम संस्कार भी करवा दिया. घरवालों का इल्ज़ाम है जिस श्मशान में अंतिम संस्कार होना था, वहां तीन अर्थियां पहले से थी, कायदे से पहले उनका अंतिम संस्कार होना था. लेकिन कोलकाता पुलिस के दबाव की वजह से पहले जूनियर डॉक्टर का ही अंतिम संस्कार करा दिया गया. कोलकाता पुलिस की इस जल्दबाजी ने भी जूनियर डॉक्टर की मौत की साजिश को और हवा दे दी. हालांकि कोलकाता पुलिस ने इस जल्दबाजी पर भी सफाई दी. 

पुलिस का कहना था कि चूंकि जूनियर डॉक्टर की मौत के बाद से ही आंदोलन जारी था, इसीलिए पुलिस ने लॉ एंड ऑर्डर को देखते हुए ऐसा किया. हालांकि तब इसके लिए मां-बाप से इजाजत ले ली गई थी. कोलकाता पुलिस की जांच पर इसलिए भी ऊंगली उठी क्योंकि संजय रॉय की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने एक तरह से केस को सुलझाने का दावा करते हुए केस क्लोज करने का लगभग मन बना लिया था. जबकि लोगों को ऐसा लगा कि ऐसा कर पुलिस आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल समेत बड़े लोगों की गलतियों को छुपाने की कोशिश कर रही है. 

इस बीच आरजी कर अस्पताल के कुछ पुराने मामले भी सोशल मीडिया पर तैरने लगे. जिनमें 2003 का सौमित्र विश्वास खुदकुशी केस भी शामिल है. इल्जाम लगे कि सौमित्र की भी हत्या हुई थी और ये हत्या अस्पताल के अंदर चल रहे सेक्स और पोर्नोग्राफी रैकेट को दबाने के लिए की गई थी. इस बीच बीजेपी के एक सांसद ने आरजी कर अस्पताल में मानव अंगों की तस्करी का मुद्दा उठा कर एक नई थ्योरी उछाल दी. अब इन अनगिनत थ्योरी के बीच बात सीबीआई की जांच की. तो सीबीआई के सामने जो सबसे अहम सवाल इस वक्त हैं जिनका जवाब उसे ढूंढना है, वो ये हैं – 

– क्या जूनियर डॉक्टर का कत्ल अकेले संजय रॉय ने किया? 
– क्या इस कत्ल के पीछे मकसद रेप था? क्या विरोध करने पर संजय रॉय ने उसका गला घोंटा?
– क्या जूनियर डॉक्टर के जिस्म पर तमाम जख्म विरोध के दौरान हुई गुत्थमगुत्थी के दौरान आए? 
– क्या ये कत्ल सेमिनार हॉल के अंदर ही हुआ? 

सूत्रों के मुताबिक सीसीटीवी कैमरे के फुटेज ने इनमें से कई सवाल के जवाब दे दिए हैं. लेकिन कुछ सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब अभी ढूंढे जा रहे हैं. जैसे लाश सुबह छह बजे देखी गई, फिर अगले तीन घंटे तक पुलिस को खबर क्यों नहीं दी गई. लाश मिलने के करीब पांच घंटे बाद घरवालों को खबर क्यों दी गई. घरवालों को खुदकुशी की बात क्यों कही गई. लाश की खबर सुबह सात बजे मिलने के बाद अगले दो घंटे तक यानी सुबह नौ बजे तक आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष ने क्या क्या किया?. किस किस से बात की? 

शुरुआत में कोलकाता पुलिस के बुलाने के बावजूद प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष पुलिस के पास क्यों नहीं गए. तीसरी मंजिल पर ही सेमिनार हॉल के करीब अचानक कंस्ट्रक्शन का काम क्यों शुरू हुआ? जब जूनियर डॉक्टर के जिस्म पर चेहरे से लेकर पैर तक जख्मों के निशान थे, जिस्म के निचले हिस्से से कपड़े गायब थे, तो फिर शुरुआत में कोलकाता पुलिस ने किसके कहने पर अननैचुरल डेथ यानी अस्वाभाविक मौत का केस दर्ज किया? जबकि लाश को देख कर कोई भी ये बता सकता था कि मामला रेप और मर्डर का है. कोलकाता हाई कोर्ट तक ने इस बात पर कोलकाता पुलिस को जम कर डांटा था. जिस अस्पताल के अंदर जूनियर डॉक्टर का क़त्ल हुआ, उसी अस्पताल में उसका पोस्टमार्टम क्यों कराया गया? किसके कहने पर कराया गया?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए सीबीआई अब तक करीब 20 लोगों से पूछताछ कर चुकी है. लेकिन आरोपी संजय रॉय के अलावा जिस शख्स से सबसे ज्यादा बार और सबसे लंबी पूछताछ हो रही है वो उसी आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष हैं. दरअसल डॉक्टर संदीप घोष अपने आप में एक संदिग्ध कैरेक्टर है. सत्ता और स्वास्थ्य मंत्रालय में इनकी अच्छी खासी पैठ है. इतनी जबरदस्त पैठ कि जब आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्रिंसिपल को चुनने के लिए इंटरव्यू हो रहा था, तब उस इंटरव्यू में ये 16वें नंबर पर रहे थे, पर इसके बावजूद इन्हें प्रिंसिपल बना दिया गया. 

दो मौके ऐसे आए, जब इन्हें आरजी कर अस्पताल से ट्रांसफर भी कर दिया गया. लेकिन ट्रांसफर ऑर्डर निकलने के बावजूद दोनों बार ना सिर्फ इन्होंने उस ऑर्डर को रुकवाया बल्कि इसी आरजी कर अस्पताल में डटे रहे. इनके ऊपर अस्पताल के वेस्ट मेटेरियल टेंडर से लेकर पार्किंग के टेंडर तक को लेकर घूस लेने के इल्जाम लगते रहे हैं. कहते हैं कि ये अस्पताल परिसर में सुरक्षा गार्ड से घिरे रहते हैं. जूनियर डॉक्टर की मौत के बाद से इन पर और भी अब तरह तरह के इल्जाम लग रहे हैं. खबर तो ये भी है कि वो सीबीआई को भी पूछताछ में गुमराह कर रहे हैं. इसीलिए सीबीआई अदालत से इजाजत लेकर प्रिंसिपल साहब का पॉलीग्राफ टेस्ट करने का भी सोच रही है. संजय रॉय के पॉलीग्राफ टेस्ट की इजाजत पहले ही अदालत से मिल चुकी है.

जिस जूनियर डॉक्टर की मौत को लेकर पूरे देश के डॉक्टर आंदोलन कर रहे हैं, उसकी मौत के सच से फॉरेंसिक रिपोर्ट बड़ी आसानी से पर्दा हटा सकती है. इस फॉरेंसिक रिपोर्ट से ये पता चल जाएगा कि जूनियर डॉक्टर के साथ रेप हुआ था या फिर गैंगरेप. अगर रिपोर्ट रेप की तरफ इशारा करती है, तो फिर संजय रॉय की सूरत में ये केस उसी पर जाकर खत्म हो जाएगा. और अगर फॉरेंसिक रिपोर्ट जूनियर डॉक्टर की मौत को गैंगरेप बताती है, तो फिर साजिश की कुछ और ही कहानी बेपर्दा हो सकती है. इसलिए जरूरी है कि सोशल मीडिया पर तैर रहे दर्जनों थ्योरी को किनारे रखते हुए फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए.

(कोलकाता से सूर्याग्नि रॉय के साथ राजेश साहा का इनपुट)

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