20 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल
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विटामिन D हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है। यह विटामिन हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। शरीर में विटामिन D की कमी होने से कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि शरीर में विटामिन D की मात्रा अधिक होना भी सही नहीं है। इसे विटामिन D टॉक्सिसिटी या हाइपरविटामिनोसिस (Hypervitaminosis) D कहते हैं। यह एक गंभीर स्थिति है, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक है।
जो लोग विटामिन D की कमी पूूरा करने के लिए ज्यादा सप्लीमेंट्स या प्रिस्क्राइब्ड दवाएं लेते हैं, उन्हें विटामिन D टॉक्सिसिटी होने का खतरा अधिक रहता है।
अक्टूबर, 2024 में ऑनलाइन मेडिकल एजुकेशन प्लेटफॉर्म टचएंडोक्रेनोलॉजी (touchENDOCRINOLOGY) में एक रिसर्च पब्लिश हुई। इसमें नॉर्थ इंडिया के एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में हाइपरकैल्सीमिया के 91 मरीजों के क्लिनिकल और बायोकेमिकल प्रोफाइल पर स्टडी की गई। इसमें पाया गया कि विटामिन D टॉक्सिसिटी के कारण हाइपरकैल्सीमिया हो सकता है। हाइपरकैल्सीमिया का मतलब है ब्लड में कैल्शियम की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाना।
इसलिए जो लोग विटामिन D सप्लीमेंट्स लेते हैं, उन्हें यह पता होना चाहिए कि उनके शरीर को कितनी विटामिन D की जरूरत है। ताकि वे विटामिन D टॉक्सिसिटी के खतरे से बच सकें।
तो आज सेहतनामा में हम विटामिन D टॉक्सिसिटी के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- विटामिन D टॉक्सिसिटी के क्या लक्षण हैं?
- इससे कैसे बचा जा सकता है?
विटामिन D शरीर के लिए कितना जरूरी है?
विटामिन D का मुख्य कार्य बॉडी में कैल्शियम को अब्जॉर्ब करना है। यह हड्डियों, दांतों और मसल्स को मजबूत बनाने, सेल्स ग्रोथ व ब्लड प्रेशर रेगुलेशन में मदद करता है। इसकी कमी होने पर बॉडी कैल्शियम को अब्जॉर्ब नहीं कर पाती है, जिससे हड्डियां कमजोर होने के साथ कई अन्य प्रॉब्लम्स होने लगती हैं।
बॉडी को कितनी विटामिन D की जरूरत होती है?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में पब्लिश स्टडी के मुताबिक, एक स्वस्थ व्यक्ति के ब्लड में 20 ng/ml (नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर) विटामिन D को सामान्य लेवल माना जाता है। 50 ng/mL से ज्यादा लेवल को अधिक माना जाता है। वहीं 12 ng/mL से कम होने पर विटामिन D डेफिशिएंसी हो सकती है।
‘इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रोनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, आमतौर पर धूप से विटामिन D की कमी को पूरा किया जा सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति को विटामिन D का लेवल मेंटेन रखने के लिए रोज 1 घंटे धूप की जरूरत है।
विटामिन D टॉक्सिसिटी कब होती है?
विटामिन D टॉक्सिसिटी तब होती है, जब शरीर में विटामिन D का लेवल अधिक बढ़ जाता है। इससे ब्लड में कैल्शियम इकट्ठा होने लगता है, जो हाइपरकैल्सीमिया का कारण बन सकता है। ये आमतौर पर विटामिन D सप्लीमेंट्स की हाई खुराक लेने से होती है।
विटामिन D टॉक्सिसिटी के क्या लक्षण हैं?
विटामिन D टॉक्सिसिटी के कई लक्षण हो सकते हैं, जो मुख्य रूप से हाइपरकैल्सीमिया के कारण होते हैं। इसके शुरुआती लक्षणों में मतली, उल्टी, भूख न लगना, ज्यादा प्यास लगना और कमजोरी महसूस होना शामिल हैं। इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं, इसे नीचे ग्राफिक से समझिए-
विटामिन D टॉक्सिसिटी का पता कैसे लगाया जा सकता है?
इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर्स सबसे पहले मरीज के लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं और दवाओं व सप्लीमेंट्स के बारे में पूछते हैं। इसके आधार पर वे कुछ टेस्ट करवाते हैं।
वे बॉडी में विटामिन D और कैल्शियम की मात्रा जांचने के लिए ब्लड टेस्ट करा सकते हैं। इसके अलावा किडनी की स्थिति जांचने के लिए किडनी फंक्शन टेस्ट (KFT) भी करा सकते हैं। इन टेस्ट्स से विटामिन D टॉक्सिसिटी का पता लगाया जा सकता है।
किन लोगों को विटामिन D टॉक्सिसिटी का खतरा अधिक होता है?
दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के सीनियर कंसल्टेंट इंटरनल मेडिसिन डॉ. अरविंद अग्रवाल बताते हैं कि विटामिन D टॉक्सिसिटी वैसे तो बहुत कम लोगों को होती है। लेकिन कुछ लोगों को इसका खतरा अधिक होता है। इसे नीचे पॉइंटर्स से समझिए-
- जो लोग डॉक्टर की सलाह के बिना अधिक मात्रा में विटामिन D सप्लीमेंट्स लेते हैं।
- जो लोग विटामिन D की अतिरिक्त खुराक लेते हैं।
- जो लोग हड्डियों की समस्याओं से संबंधित दवाओं का ज्यादा दिनों तक सेवन करते हैं।
विटामिन D टॉक्सिसिटी का इलाज कैसे किया जाता है?
विटामिन D टॉक्सिसिटी के इलाज में मुख्य रूप से ब्लड में कैल्शियम के लेवल को कम किया जाता है। इसके लिए डॉक्टर्स सबसे पहले विटामिन D और कैल्शियम की खुराक बंद करवाते हैं। आमतौर इससे टॉक्सिसिटी ठीक हाे जाती है।
वहीं हाइपरकैल्सीमिया की स्थिति होने पर डॉक्टर्स डिहाइड्रेशन के इलाज के लिए नसों के जरिए IV फ्लूइड (Intravenous fluids) देते हैं। IV फ्लूइड पानी और सोडियम क्लोराइड का मिश्रण होता है, जिसे सलाइन भी कहा जाता है।
इसका इस्तेमाल शरीर से एक्स्ट्रा कैल्शियम को बाहर निकालने के लिए किया जाता है। ज्यादातर मामलों में इससे राहत मिल जाती है। लेकिन कुछ सीरियस टॉक्सिसिटी केसेस में हेमोडायलिसिस की जरूरत भी पड़ सकती है। इसमें एक मशीन के जरिए ब्लड से अपशिष्ट, सॉल्ट और लिक्विड को फिल्टर किया जाता है।
विटामिन D टॉक्सिसिटी से बचने के लिए क्या करें?
इससे बचने के लिए कुछ सरल उपाय हैं। इन्हें अपनाकर विटामिन D टॉक्सिसिटी से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है। इसे नीचे ग्राफिक से समझिए-
विटामिन D टॉक्सिसिटी हो गई है तो क्या करें?
अगर विटामिन D टॉक्सिसिटी के लक्षण महसूस होते हैं तो सबसे पहले डॉक्टर से संपर्क करें। विटामिन D सप्लीमेंट्स का सेवन तुरंत बंद कर दें।
डॉक्टर की सलाह के बिना किसी प्रकार के सप्लीमेंट का सेवन न करें। अधिक पानी पिएं, ताकि शरीर से एक्स्ट्रा कैल्शियम बाहर निकल सके। डॉक्टर द्वारा लिखी दवाओं काे समय पर खाएं और समय-समय पर विटामिन D की जांच करवाते रहें।
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