24 मिनट पहलेलेखक: मृत्युंजय
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आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। कहते हैं कि आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान कृष्ण के व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। उनकी संपूर्ण जीवन-यात्रा और उनके संबंध हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं। उनके रिश्तों से हमें प्रेम, विश्वास, सहयोग, मार्गदर्शन और क्षमा के महत्व के बारे में सीखने को मिलता है।
भगवान कृष्ण एक निष्काम कर्मयोगी के रूप में दिखाई देते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में रिश्तों की विभिन्न भूमिकाएं निभाईं और जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाए। आज रिलेशनशिप कॉलम में भगवान श्रीकृष्ण से रिश्ते के ऐसे ही कुछ सबक सीखेंगे।
कृष्ण के जीवन में रिश्तों की अहमियत सबसे बड़ी
भगवान कृष्ण का जीवन रिश्ते निभाने की सीख देता है। उनका पूरा जीवन भी रिश्तों के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आता है। उन्होंने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा, जिनको मन से अपना माना।
महाभारत के अनुसार, अर्जुन से वे युवावस्था में मिले। लेकिन अर्जुन से उनका रिश्ता हमेशा बना रहा। सुदामा हों या उद्धव या फिर द्रौपदी, कृष्ण ने जिसे एक बार अपना मान लिया, उसका साथ जीवन भर निभाया रिश्तों के लिए कृष्ण ने कई लड़ाइयां लड़ीं और रिश्तों से ही कई लड़ाइयां जीतीं भी।
भगवान कृष्ण का यही संदेश है कि सांसारिक इंसान की सबसे बड़ी पूंजी रिश्ते ही हैं। अगर किसी के पास रिश्तों की थाती नहीं है तो वो इंसान संसार के लिए गैरजरूरी है। इसलिए अपने रिश्तों को दिल से जिएं, दिमाग से नहीं।
राधा और कृष्ण की जोड़ी प्रेम का अनुपम उदाहरण
राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी अपने आप में एक अनुपम उदाहरण है, जो हमें सच्चे प्रेम की परिभाषा सिखाती है। राधा कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं और उनकी शादी का जिक्र दूसरे शख्स के साथ मिलता है, लेकिन फिर भी उनका प्रेम अमर हो गया। कृष्ण की 16 हजार से अधिक पटरानियां थीं, लेकिन राधा के साथ उनका प्रेम अलग था।
उनके प्रेम में कोई बंधन नहीं था, कोई ईर्ष्या नहीं थी, कोई उम्मीद भी नहीं थी। यह एक निश्छल प्रेम था, जो किसी से भी अपेक्षा नहीं रखता था। उनके प्रेम पर किसी ने सवाल नहीं उठाए, बल्कि यह एक उदाहरण बन गया है, जो हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम क्या होता है।
राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम बिना किसी बंधन के, बिना किसी ईर्ष्या के और बिना किसी उम्मीद के होता है। यह एक ऐसा प्रेम है, जो किसी से भी अपेक्षा नहीं रखता और किसी को भी दुख नहीं पहुंचाता।
दोस्ती में हो बराबरी का भाव, ऊंच-नीच का भेद नहीं
श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कहानी भी एक अद्वितीय मिसाल है, जो हमें सच्ची मित्रता के मायने सिखाती है। दोनों बचपन के मित्र थे और महर्षि सांदीपनि के आश्रम में एक साथ शिक्षा पाई थी। बाद में वे अलग-अलग रास्ते पर चले और अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए। श्रीकृष्ण द्वारिका के राजा बन गए जबकि सुदामा बहुत ही गरीबी में जीवन बिता रहे थे।
एक दिन सुदामा अपने प्रिय मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे। श्रीकृष्ण ने स्वयं सुदामा का स्वागत किया और मित्र के जीवन की सारी मुश्किलें दूर कर दीं।
कृष्ण के नेतृत्व में दूसरों के लिए सोचना अहम
कृष्ण के जीवन से हमें यह सबक मिलता है कि एक सच्चा लीडर बनने के लिए हमें अपने बारे में सोचने की बजाय दूसरों को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। कृष्ण ने अपने जीवन में कभी भी किसी का हक नहीं छीना और न ही खुद को सर्वोपरि बनाया। उन्होंने हमेशा दूसरों को महत्व दिया और खुद पीछे रहकर उनकी मदद करते रहे।
महाभारत युद्ध में भी कृष्ण ने अपनी रणनीति और सलाह से पांडवों की मदद की, लेकिन जीत का श्रेय उन्होंने कभी नहीं लिया। यह उनकी सच्ची नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
इसलिए हमें कृष्ण के जीवन से सीखना चाहिए कि एक सच्चा लीडर बनने के लिए हमें अपने बारे में सोचने की बजाय दूसरों को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए।
समय के साथ खुद को बदलने की क्षमता
भगवान कृष्ण की अलग-अलग लीलाएं और रूप हमें उनकी विविधता और सर्वगुणसंपन्नता का दर्शन कराती हैं। वे गोपियों के साथ प्रेम लीला में लीन होते हैं, साथी ग्वालों के साथ क्रीड़ा में भाग लेते हैं, कुरूक्षेत्र की रणभूमि में गीता ज्ञान के उपदेशक बनते हैं, पापी कंस के वध के लिए वीर बनते हैं, यदुवंश को बचाने के लिए युद्ध छोड़ द्वारिका जाने वाले रणछोड़ बनते हैं और मैया यशोदा के लिए हमेशा उनका प्यारा माखनचोर लल्ला बने रहते हैं।
श्रीकृष्ण की यह विविधता हमें सिखाती है कि जीवन में अलग-अलग परिस्थितियों में हमें अलग-अलग रूप में ढलना होता है। हमें अपने आप को परिस्थितियों के अनुसार बदलना होता है और अपने गुणों को विकसित करना होता है। श्रीकृष्ण की लीलाएं हमें यही सिखाती हैं कि जीवन में हमें विविधता को अपनाना होता है और अपने आप को विकसित करना होता है।