11 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी
- कॉपी लिंक
यह सोशल मीडिया ट्रेंड्स और मीम्स का जमाना है। यहां हर छोटी-बड़ी बात अगर रिलेवेंट है तो इंटरनेट पर वायरल हो जाती है। एक मीम अक्सर वायरल होता है, जिसमें किसी बच्चे का सिर दर्द कर रहा है या पैर दर्द कर रहे हैं या फिर उसे बुखार आ गया है। इन सभी समस्याओं पर पेरेंट्स एक ही ताना देते हैं कि और चला लो फोन।
मीम में सवाल होता है कि इन सभी बातों का भला फोन से क्या कनेक्शन है, लोग ठहाके लगाते हैं। लेकिन अब साइंस स्टडी कह रही हैं कि कनेक्शन तो है। पेरेंट्स का कहना बिलकुल सही है।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइकिएट्री के मुताबिक, बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम आने वाले समय में बड़ी समस्या के रूप में सामने आ सकता है। इससे कई बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
इंडियन जर्नल ऑफ ऑफथेल्मोलॉजी में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, ज्यादा स्क्रीन देखने के कारण बच्चों में ड्राई आंखों की समस्या बढ़ रही है।
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा था, “बच्चों का गेम एडिक्शन आने वाले समय में ड्रग्स और मादक पदार्थों की लत की तरह ही साबित होगा। इससे मानसिक और शारीरिक सेहत को कई नुकसान हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि इस पर कोई कानून लाया जाए।”
कुल मिलाकर ज्यादातर इशारे इसी ओर हैं कि बच्चों के लिए स्क्रीन और मोबाइल का इस्तेमाल अच्छा नहीं है। अगर इससे उनकी पढ़ाई का कुछ लेना-देना है तो इसकी लिमिट तय करना और उन्हें इसके हेल्दी यूज और एक्टिविटीज के बारे में बताना जरूरी है।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में जानेंगे कि बच्चों पर स्क्रीन का क्या असर होता है। साथ ही समझेंगे कि-
- इससे बच्चों को किस तरह की समस्याएं हो रही हैं?
- बच्चों के लिए हेल्दी स्क्रीन टाइम लिमिट क्या है?
- टाइम लिमिट और सीमाएं तय करने के लिए क्या कर सकते हैं?
आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि तकनीकी विकास ने हमारे जीवन को आसान बनाने के साथ क्या समस्याएं पैदा की हैं। इस बारे में प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट और साइकिएट्रिस्ट एडम गेजेली ने एक किताब लिखी है।
(डॉ. गजेली ने इस पर एक किताब भी लिखी है- ‘द डिस्ट्रैक्टेड माइंड: एन्शिएंट ब्रेन्स इन ए हाई टेक वर्ल्ड’)
स्क्रीन टाइम से बढ़ रही हैं मुश्किलें
कोरोना महामारी के बाद जैसे-जैसे प्रतिबंध कम होने शुरू हुए, सारी गतिविधियां अपने पुराने रंग में लौटने लगीं। इसी बीच सबको एहसास हुआ कि उनका स्क्रीन टाइम काफी बढ़ गया है। चूंकि बच्चे इस दौरान अपनी पढ़ाई के लिए भी स्क्रीन के भरोसे थे तो उनके लिए यह समस्या और भी बड़ी हो गई।
पढ़ाई के अलावा भी उनका लंबा समय स्क्रीन के साथ बीतने लगा, जो अभी तक जारी है। अब इसके नुकसान सामने आने शुरू हो गए हैं।
नीचे ग्राफिक में देखिए।
घट रहा है अटेंशन स्पैन
स्क्रीन के साथ ज्यादा समय बिताने का नतीजा ये है कि अब सबका अटेंशन स्पैन कम हो रहा है। फोकस घट रहा है। दिमाग किसी एक चीज पर ज्यादा देर तक टिक नहीं पाता। हमारे ब्रेन डेवेलपमेंट के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम बिना भटके किसी काम में लगातार कितनी देर तक अपना ध्यान लगाए रख सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, इरविन की एक स्टडी के मुताबिक इंसानों का औसत अटेंशन स्पैन तेजी से नीचे गिरा है। यह बीते 20 सालों में 2.5 मिनट से घटकर 47 सेकेंड पर पहुंच गया है।
बीते कुछ समय में बच्चों और किशोरों का स्क्रीन टाइम अधिक बढ़ा है तो इसका असर भी उनमें अधिक देखने को मिला है। अटेंशन स्पैन घटने से उनकी स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई, पारिवारिक संबंध और फिजिकल फिटनेस पर बुरा असर पड़ा है।
बच्चों के लिए एवरेज स्क्रीन टाइम क्या है
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइकिएट्री ने बच्चों के लिए स्क्रीन के इस्तेमाल की टाइमलाइन जारी की है। दुनिया के ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञ बच्चों के लिए यही टाइमलाइन रिकमेंड करते हैं।
बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के लिए क्या करें
अगर बच्चे का स्क्रीन टाइम ज्यादा है तो एक ही दिन में ऐसा नहीं होगा कि वह फोन चलाना बंद कर देगा। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने बच्चे से इस बारे में बात करें कि उसे सोशल मीडिया और ऑनलाइन दुनिया को किस तरह बरतना चाहिए। उसके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है।
छोटे बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के लिए यह कुछ नियम और दिशा-निर्देश उपयोगी हो सकते हैं:
- हमें अपने डिवाइस या मोबाइल में छोटे बच्चों द्वारा देखे जा सकने वाले मैटेरियल को सीमित करने के लिए पेरेंटल कंट्रोल सेट करना चाहिए।
- बड़े बच्चों और किशोरों के हेल्दी स्क्रीन टाइम के लिए उनसे अच्छी बातचीत करें। उन्हें बताएं कि कुछ सीमाएं निर्धारित करना कितना जरूरी है।
- घर में नियम बनाएं कि सब लोग सोने से एक घंटे पहले ही अपने स्क्रीन बंद कर देंगे। आपको खुद भी इसे अपनी आदत में लाना होगा ताकि बच्चे आपको देखकर प्रेरित हों।
- खाने की मेज पर या पारिवारिक गतिविधियों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग प्रतिबंधित कर सकते हैं।
- खुद पैरामीटर्स सेट करते हुए बच्चों को बताएं कि अपने कामकाज, गृहकार्य और अन्य गतिविधियां प्राथमिक हैं। फोन का इस्तेमाल या सोशल मीडिया का इस्तेमाल कुछ समय मनोरंजन के लिए ठीक है।
- बच्चों को यह समझने में मदद करें कि कैसे कम स्क्रीन टाइम हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
- बच्चों के साथ ईमानदारी बरतें। उनसे एकाएक सबकुछ बदलने की जबरदस्ती न करें। यह स्वीकार करें कि स्क्रीन टाइम कम करना कितना कठिन हो सकता है। जब बच्चे इससे उबरने की कोशिश कर रहे हैं तो उनके प्रयासों की प्रशंसा करें।
- अगर छोटे बच्चे का समय किसी केयरटेकर या संस्था के साथ बीत रहा है तो यह सुनिश्चित करें कि केयरटेर को स्क्रीन टाइम लिमिट के बारे में सही जानकारी है। वह इस बारे में सबकुछ जानता और समझता है।
- बतौर पेरेंट्स हमें भी यह समझना जरूरी है कि आज की दुनिया किस हद तक इंटरनेट पर निर्भर है। बच्चों के लिए इंटरनेट और ऑनलाइन दुनिया के साथ सहज होना भी जरूरी है। इसलिए जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनके ऊपर कंट्रोल रखने की बजाय उन्हें बताएं कि कैसे इंटरनेट का इस्तेमाल अपने हित के लिए किया जा सकता है।
- अगर बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम कम करना मुश्किल हो रहा है या वे चिड़चिड़े हो रहे हैं तो यह समझने की कोशिश करें कि उन्हें क्या महसूस हो रहा है। अगर उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि स्क्रीन या इंटरनेट के बिना वे कुछ खो रहे हैं तो उन्हें इस जरूरत को पूरा करने के अन्य तरीके सुझाएं। इसके लिए स्पोर्ट्स और फिजिकल एक्टिविटीज बेहतर विकल्प हो सकती हैं।
- अगर इससे बात नहीं बन रही है तो किसी प्रोफेशनल एक्सपर्ट की मदद ले सकते हैं।