3 मिनट पहले
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एकल परिवार में पलने वाले बच्चों में नई किस्म की समस्या घर कर रही है। वे लोगों से घुलना-मिलना नहीं चाहते। मां-बाप के अलावा उनका ज्यादा लोगों से परिचय भी नहीं होता। वे सोशल इंटरेक्शन की जगह मोबाइल फोन में घुसे रहना पसंद करते हैं। मनोविज्ञान की भाषा में इस स्थिति को ‘सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर’ कहते हैं।
अगर बच्चे सोशल एंग्जाइटी के शिकार हो जाएं तो क्लास में उनका प्रदर्शन गिरता चला जाता है। उन्हें कुछ भी सीखने में दिक्कत आती है। आगे चलकर वे पर्सनल और प्रोफेशनल रिश्ते बनाने में भी कमतर साबित होते हैं। ये सारी चीजें मिलकर उन्हें करियर और पूरी जिंदगी में पीछे रख सकती हैं।
इसलिए आज रिलेशनशिप कॉलम में बच्चों में पनप रही सोशल एंग्जाइटी को समझने की कोशिश करेंगे। साथ ही एक्सपर्ट और रिसर्च की मदद से इसका उपाय भी जानेंगे।
बचपन में हुई सोशल एंग्जाइटी तो पूरी जिंदगी पर नकारात्मक असर
ऑस्ट्रेलिया के पेरेंटिंग रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसी भी उम्र के लोग सोशल एंग्जाइटी का शिकार हो सकते हैं, लेकिन बच्चों के लिए यह खासतौर से नुकसानदेह है।
सोशल एंग्जाइटी की वजह से वे बाकी दुनिया से कट जाते हैं। यह उनके विकास में बाधा बनती है। इसकी वजह से उनके आगे बढ़ने के ज्यादातर रास्ते बंद हो जाते हैं।
लेकिन अगर पेरेंट्स कुछ बातों का ध्यान रखें तो बचपन में ही सोशल एंग्जाइटी की पहचान कर इसका हल भी ढूंढा जा सकता है।
पेरेंटिंग रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों में सोशल एंग्जाइटी के ये लक्षण हो सकते हैं-
बच्चों का जरूरत से ज्यादा आज्ञाकारी होना खतरे की निशानी
नैतिक शिक्षा की किताबों से लेकर बड़े-बुजुर्गों की समझाइश में बच्चों को ‘आज्ञाकारी’ होने के लिए कहा जाता है। जो बच्चा जितना ज्यादा आज्ञाकारी होता है, उसे उतना बेहतर माना जाता है।
लेकिन साइकोलॉजी की नई रिसर्च कहती है कि बिना कुछ बोले हर अच्छे-बुरे निर्देश का पालन करना बच्चों में सोशल एंग्जाइटी का लक्षण हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक सोशल एंग्जाइटी की स्थिति में बच्चे कुछ भी बोल पाने या अपनी राय जाहिर करने में संकोच महसूस करते हैं। इसलिए मां-बाप या टीचर की कही हर बात में सहमति दे देते हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि सहमति देने के बाद बच्चा उस काम को करे भी।
सोशल एंग्जाइटी की वजह से आज्ञाकारी बने बच्चों में क्रिएटिविटी खत्म हो जाती है। वे अपनी पसंद-नापसंद को पहचान पाने में भी असमर्थ हो जाते हैं। वे अपने फैसलों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने लगते हैं।
शरीर पर भी दिख सकते हैं सोशल एंग्जाइटी के लक्षण
वैसे तो सोशल एंग्जाइटी मुख्यतः दिल और दिमाग से संबंधित है, लेकिन इसके कुछ लक्षण शरीर पर भी दिख सकते हैं। सोशल एंग्जाइटी महसूस करने वाले बच्चे दूसरे लोगों से मिलते ही कुछ शारीरिक कमजोरियों का प्रदर्शन कर सकते हैं-
स्टेप लैडर अप्रोच से दूर होगी बच्चों की सोशल एंग्जाइटी
अगर किसी कारण से बच्चे में सोशल एंग्जाइटी घर कर जाए तो उसे दूर करने में स्टेप लैडर अप्रोच मददगार साबित हो सकती है। इस अप्रोच का इस्तेमाल मां-बाप खुद से अपने घर पर ही कर सकते हैं।
स्टेप लैडर अप्रोच बच्चों के डर और एंग्जाइटी को धीरे-धीरे क्रमबद्ध तरीके से दूर करने की वकालत करता है। जिस तरह लैडर यानी सीढ़ी में एक पायदान के बाद दूसरे पायदान का नंबर आता है, उसी तरह स्टेप लैडर अप्रोच में भी छोटी समस्या या डर से बड़ी समस्या या डर को दूर करने की ओर बढ़ते हैं।
मान लीजिए कि कोई बच्चा सोशल एंग्जाइटी की वजह से अपनी क्लास में किसी से बात नहीं कर पाता तो स्टेप लैडर अप्रोच के तहत मां-बाप पहले उस बच्चे के साथ खुद बात करने की कोशिश करेंगे। जब बच्चा मां-बाप के साथ बात करने में कंफर्टेबल हो जाए तो उसे किसी परिचित या पड़ोसी बच्चों के साथ इंटरेक्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसी तरह धीरे-धीरे बच्चों के मन से सोशल एंग्जाइटी बाहर निकल जाती है और वह लोगों से इंटरेक्ट करने लगता है। क्लास में उसके कई दोस्त बन जाते हैं और उसे टीचर के सामने झिझक महसूस नहीं होती।
गंभीर स्थिति में विशेषज्ञों की मदद जरूरी
पेरेंटिंग रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों में 4 से 6 साल की उम्र में सोशल एंग्जाइटी को दूर करना आसान होता है। इस पीरियड में पेरेंट्स खुद अपनी कोशिशों से स्टेप लैडर अप्रोच की मदद से बच्चे की सोशल एंग्जाइटी को दूर कर सकते हैं।
लेकिन अगर सोशल एंग्जाइटी लंबी रहे तो वह बच्चे के स्वभाव का हिस्सा बन जाती है। ऐसी स्थिति में इसे ठीक करने के लिए प्रोफेशनल काउंसलर की मदद लेनी पड़ सकती है। कुछ गंभीर मामलों में दवा की भी जरूरत पड़ सकती है।
इसके अलावा बच्चों में सोशल एंग्जाइटी को दूर करने के लिए ये उपाय भी मददगार साबित हो सकते हैं-
- बच्चों के साथ दोस्ताना संबंध विकसित करें। उनसे उनकी सोशल लाइफ के बारे में बातें करें और सही सलाह दें।
- खुद से बच्चों को सोशल लाइफ में इंट्रोड्यूस कराने की कोशिश करें। दोस्त या रिश्तेदारों के सामने बच्चों को दबाव में न डालें।
- अगर बच्चा झिझक महसूस करता है तो रिश्तेदारों के सामने उसे पोएम या काउंटिंग वगैरह सुनाने के लिए न कहें।
- जहां तक संभव हो सके, बच्चों को पॉजिटिव सोशल इंटरेक्शन करने दें।
- स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल में सावधानी बरतें।
- कई बार पेट में मौजूद माइक्रो बैक्टीरिया भी सोशल फोबिया या एंग्जाइटी की वजह बन सकते हैं। ऐसे में फास्ट फूड से दूर रहना और हेल्दी खाना मददगार साबित हो सकता है।