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Clinical Depression Suicide; Robin Uthappa| Symptoms Identification Explained | सेहतनामा- पूर्व इंग्लिश क्रिकेटर ने क्लिनिकल डिप्रेशन में की आत्महत्या: रॉबिन उथप्पा ने सुनाई आपबीती, जानें लक्षण और बचाव

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17 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी

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इंग्लैंड के पूर्व दिग्गज क्रिकेटर ग्राहम थोर्प का 5 अगस्त को 55 साल की उम्र में निधन हो गया था। अब उनकी मौत पर बड़ा खुलासा हुआ है। उनकी पत्नी ने बताया है कि ग्राहम ने आत्महत्या की थी, वह लंबे समय से क्लिनिकल डिप्रेशन से जूझ रहे थे।

इस खबर के बाद 38 वर्षीय पूर्व भारतीय क्रिकेटर रॉबिन उथप्पा ने अपने जीवन के उस बुरे दौर को याद किया है, जब साल 2011 में वह डिप्रेशन में चले गए थे। उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा है कि-

‘मैंने हाल ही में ग्राहम थोर्प के बारे में सुना है और हमने कई क्रिकेटरों के बारे में सुना है, जिन्होंने क्लिनिकल डिप्रेशन के कारण अपना जीवन समाप्त कर लिया है। पहले भी हमने ऐसे एथलीट्स और क्रिकेटरों के बारे में सुना है, जो इससे जूझ रहे थे। इसमें लगने लगता है कि जैसे तुम बेकार हो। उन लोगों के लिए बोझ हो, जिनसे आप प्यार करते हो। आपको निराशा घेर लेती है। हर कदम पिछले कदम से अधिक भारी लगता है।’

क्लिनिकल डिप्रेशन को मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर भी कहते हैं। इसके कारण इंसान को जिंदगी की ज्यादातर चीजों से दिलचस्पी खत्म हो जाती है। यहां तक कि स्वयं को आइने के सामने देखने का तक मन नहीं करता है। यह लोगों को आत्महत्या की तरफ ले जाता है।

इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे क्लिनिकल डिप्रेशन की। साथ ही जानेंगे कि-

  • इसके क्या लक्षण होते हैं?
  • इसे कैसे पहचाना जा सकता है?
  • इसका इलाज और बचाव क्या है?

पूरी दुनिया में 28% लोग डिप्रेशन का शिकार

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, पूरी दुनिया में 28 करोड़ लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। दुनिया के 5% युवा डिप्रेशन का शिकार हैं, जबकि 60 साल से अधिक उम्र के 5.7% बुजुर्ग इसका सामना कर रहे हैं।

वहीं क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक क्लिनिकल डिप्रेशन सबसे कॉमन मेंटल हेल्थ कंडीशन है। 5 से 17% लोग जीवन में कभी-न-कभी इसका सामना करते हैं। इसका मतलब है कि लगभग हर छठवां आदमी जीवन में एक बार क्लिनिकल डिप्रेशन के फेज से गुजरता है।

क्लिनिकल डिप्रेशन क्या है

क्लिनिकल डिप्रेशन एक मेंटल हेल्थ कंडीशन है। जिससे मूड लगातार लो और उदास बना रहता है। जो एक्टिविटीज कभी खुशी का कारण बनती थीं, उनमें रुचि खत्म हो जाती है। क्लिनिकल डिप्रेशन नींद, भूख और स्पष्ट रूप से सोचने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

क्लिनिकल डिप्रेशन कई तरह का होता है, जैसे-

  • सीजनल डिप्रेशन (Seasonal Depression)
  • प्रसवपूर्व डिप्रेशन और प्रसवोत्तर डिप्रेशन (Prenatal Depression and Postpartum Depression)
  • असामान्य अवसाद (Atypical Depression)

इसकी जांच के दौरान अक्सर सामने आता है कि क्लिनिकल डिप्रेशन से जूझ रहे लोग अक्सर अन्य मेंटल हेल्थ कंडीशंस का भी सामने कर रहे होते हैं, जैसे-

  • सब्सटेंस यूज डिसऑर्डर (नशे की लत)
  • घबराहट की समस्या (Panic Disorder)
  • सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर (Social anxiety disorder)
  • अनियंत्रित जुनूनी विकार (Obsessive-compulsive disorder)

क्लिनिकल डिप्रेशन के प्रति जरूरी है जागरुकता

रॉबिन उथप्पा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि उनकी अब तक की सबसे मुश्किल लड़ाई डिप्रेशन के ही खिलाफ थी। इसे छिपाने की बजाय बताना बेहतर है ताकि आपके आसपास के लोग और डॉक्टर्स आपकी मदद कर पाएं। अगर इससे स्वयं जूझते रहेंगे तो यह अंधेरा घना होता जाता है और इंसान इसमें खो जाता है। यह शर्म या कलंक की बात नहीं है। इसके प्रति जागरुकता जरूरी है।

क्लिनिकल डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं

क्लिनिकल डिप्रेशन के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दिन के अधिकांश समय, लगभग हर दिन, कम से कम दो सप्ताह तक बने रहते हैं।

क्लिनिकल डिप्रेशन का क्या कारण है

अभी तक क्लिनिकल डिप्रेशन का कोई सटीक कारण ज्ञात नहीं है। हालांकि क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक, इसके लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं। जो निम्न हैं:

ब्रेन केमिस्ट्री (Brain Chemistry): सेरोटॉनिन, नॉरपेनेफ्रिन और डोपामाइन सहित न्यूरोट्रांसमीटर का असंतुलन, डिप्रेशन के विकास में योगदान देता है। पहले माना जाता था कि यह असंतुलन ही डिप्रेशन की प्रथमिक वजह है। हालांकि, बीते समय में हुई स्टडीज से पता चला है कि असल में न्यूरो सर्किट में गड़बड़ी के कारण यह असंतुलन पैदा होता है।

आनुवांशिकी (Genetics): अगर किसी शख्स के माता-पिता या भाई-बहन को क्लिनिकल डिप्रेशन है तो उसमें इस स्थिति के विकसित होने की संभावना अन्य लोगों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक होती है। हालांकि किसी को भी फैमिली हिस्ट्री के बिना भी क्लिनिकल डिप्रेशन हो सकता है।

बचपन का विकास (Childhood Development): अगर किसी शख्स के साथ बचपन में दुर्व्यवहार हुआ है या और कोई अप्रिय घटना घटी है तो इसका उनपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बचपन के अनुभव जीवन में बाद में क्लिनिकल डिप्रेशन का कारण बनते हैं।

जीवन की अप्रिय घटनाएं (Stressful life events): जिंदगी में घटे कठिन अनुभव, जैसे- किसी प्रियजन की मृत्यु, आघात, तलाक, अलगाव और प्यार की कमी भी लोगों में क्लिनिकल डिप्रेशन को ट्रिगर कर सकती है। जो लोग अधिक संवेदनशील होते हैं, उन्हें अधिक मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

क्लिनिकल डिप्रेशन का इलाज कैसे किया जाता है

इसके इलाज में आमतौर पर दवाएं और थेरेपीज दी जाती हैं। किसी शख्स की कंडीशन कितनी सामान्य या गंभीर है, उसके आधार पर तय किया जाता है कि उसे इलाज के लिए इनमें से एक ट्रीटमेंट की जरूरत है या दोनों की। इसके इलाज में दवाओं और थेरेपीज का संयोजन सबसे अधिक कारगर है।

क्या क्लिनिकल डिप्रेशन को रोका जा सकता है

जरूरी नहीं है कि हम क्लिनिकल डिप्रेशन को रोकने में सफल हो जाएं, लेकिन कुछ उपायों की मदद से इसके जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है। जैसे-

  • क्वालिटी नींद लेना और अच्छी नींद के लिए उसी तरह की दिनचर्या अपनाना।
  • स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए हेल्दी हैबिट्स अपनाना।
  • एक्सरसाइज, मेडिटेशन और योग जैसी नियमित सेल्फ केयर एक्टिविटीज का अभ्यास करना।
  • अपनी किसी भी मेडिकल या मेंटल हेल्थ कंडीशन का प्रबंधन करना।
  • शराब और अन्य नशीले पदार्थों के दुरुपयोग से बचना।

यदि किसी शख्स को पहले कभी क्लिनिकल डिप्रेशन का अनुभव हुआ है तो उसे दोबारा ऐसा होने की अधिक संभावना हो सकती है। अगर किसी व्यक्ति को डिप्रेशन के लक्षण महसूस हो रहे हैं तो उसे बिना देर किए अपने करीबी लोगों से साझा करना चाहिए और डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

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