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- Column By Gro Harlem Brundtland We Don’t Seem To Have Learned Any Lessons From The Covid Pandemic
3 मिनट पहले
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ग्रो हार्लेम बुंडलैंड, नॉर्वे की पूर्व प्रधानमंत्री और डब्ल्यूएचओ की पूर्व महानिदेशक
पिछले सप्ताह, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ने पूर्वी अफ्रीका में एमपॉक्स के नवीनतम प्रकोप को ‘अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ घोषित किया है। हमारे पास कोविड-19 के बुरे अनुभव हैं, जिनकी रौशनी में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब प्रभावित अफ्रीकी देशों और सबसे अधिक जोखिम वाले देशों के साथ भी एकजुट होना चाहिए।
साथ ही, एमपॉक्स के और अधिक देशों और दुनिया भर में संभावित प्रसार के लिए भी खुद को तैयार कर लेना चाहिए। बात अकेले एमपॉक्स की नहीं है, एच5एन1 बर्ड फ्लू और डेंगू बुखार भी निरंतर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बनते रहे हैं। नई महामारियां भी निश्चित रूप से भविष्य में सामने आएंगी ही, खासकर जब जलवायु-परिवर्तन से पर्यावरण में निरंतर गिरावट होती जा रही है।
चार साल पहले, जब कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी, तब दुनिया भर की सरकारें अपने लोगों की रक्षा करने और आर्थिक मंदी को रोकने के लिए संघर्ष कर रही थीं। कोई भी इस बात पर प्रश्न नहीं कर सकता कि उस समय मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा बन गए इस संकट का सामना करना ही सर्वोच्च राजनीतिक प्राथमिकता थी।
एक पूर्व प्रधानमंत्री और विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व महानिदेशक के रूप में, मैं कोविड-19 के लिए समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया से प्रभावित थी। यकीनन, तरह-तरह के देशों की प्रतिक्रियाओं में बड़ी असमानताएं थीं, जिसके परिणामस्वरूप समाज के कमजोर तबके के लोगों को बहुत कीमत चुकानी पड़ी, खासकर जब वैक्सीन तक पहुंच की बात आई।
लेकिन मुझे उम्मीद थी कि महामारी के विनाशकारी प्रभाव से राजनीति में बदलाव आएगा और भविष्य की तैयारियों, आगामी महामारियों की रोकथाम और उन पर प्रतिक्रिया के लिए अधिक प्रतिबद्धता दिखाई देगी। लेकिन मैं गलत थी।
यह निराशाजनक रूप से स्पष्ट है कि कोविड-19 से कोई सबक नहीं सीखे गए हैं। दुनिया आज भी भयपूर्ण हड़बड़ाहट और उपेक्षा के उसी परिचित कुचक्र में फंसी हुई है, जो पिछली महामारी की विशेषता रही थी। राजनेता वर्तमान खतरों की बड़े पैमाने पर अनदेखी कर रहे हैं।
कोविड-19 अब सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल नहीं है, इसके बावजूद इतिहास की किताबों में इसे सम्मिलित नहीं किया गया है। जबकि कोविड-19 के पहले से ही मैं लगातार यह चेतावनी देती आ रही थी कि महामारियों के दुष्चक्र को तोड़ने में हमारी विफलता हमें गम्भीर जोखिम में डाल रही है।
सितंबर 2019 में, वैश्विक तैयारी निगरानी बोर्ड (जिसकी मैं सह-अध्यक्षता करती हूं) ने एक विनाशकारी वैश्विक महामारी के गम्भीर जोखिम को उजागर करते हुए एक रिपोर्ट जारी की थी। हमें नहीं पता था कि हमारी चेतावनियां कितनी दूरदर्शी थीं।
लेकिन आज हम खुद को उपेक्षा के एक नए दौर में पाते हैं, जिसे केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की विफलता के रूप में ही समझा जा सकता है। कोविड-19 युग में कही गई तमाम बातों के बावजूद दुनिया की सरकारें उन असमानताओं को दूर करने में विफल रही हैं, जिन्होंने रिकवरी के प्रयासों को बाधित किया था।
यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि अमीर देशों ने अगली महामारी के लिए अपनी प्रतिक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने के लिए लगभग कुछ नहीं किया है। जून में 77वीं वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली एक नए महामारी-समझौते को अंतिम रूप देने में विफल रही, जबकि इस पर दो साल से काम किया जा रहा था और इसका उद्देश्य कोविड की पुनरावृत्ति को रोकना है। सदस्य देशों ने वार्ता को 12 महीने तक के लिए बढ़ा दिया है।
महत्वपूर्ण मामलों पर आम सहमति न बन पाना विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते विश्वास की कमी का लक्षण है। लेकिन यह हमारे समय के सबसे बड़े खतरों में से एक पर कार्रवाई में देरी का बहाना नहीं हो सकता। अगर बीते चार सालों ने हमें कुछ सिखाया है तो वो यह है कि महामारियों से जूझने की जिम्मेदारी अकेले डब्ल्यूएचओ के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती।
- अगर बीते चार सालों ने हमें कुछ सिखाया है तो वो यह है कि महामारियों से जूझने की जिम्मेदारी अकेले डब्ल्यूएचओ के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। इसके बावजूद राजनेता खतरों की बड़े पैमाने पर अनदेखी कर रहे हैं।
(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)