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Diwali Firecrackers Air Pollution Side Effects; Asthma | Covid 19 Victims | जरूरत की खबर- अस्थमा और कोविड पीड़ितों के लिए मुश्किल: पटाखों और पराली का धुआं जानलेवा, एयर प्यूरीफायर रखे ख्याल

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31 मिनट पहलेलेखक: शशांक शुक्ला

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भारत में अक्टूबर से लेकर मार्च का समय केवल सर्दियों और त्योहारों का समय नहीं होता, बल्कि इस दौरान उत्तर भारत के कई राज्य धुंध और वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। देश भर में दिवाली, क्रिसमस और न्यू ईयर पर पटाखे फोड़े जाते हैं। दिवाली के बाद कुछ किसान धान की फसल के बाद खेतों में पराली भी जलाते हैं, जिसके धुएं से वायु प्रदूषण फैलता है। यह प्रदूषण अस्थमा या सांस से जुड़ी बीमारियों के लिए खतरनाक है।

ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज (GBD) 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, पूरी दुनिया में अस्थमा से होने वाली मौतों में से तकरीबन 46% मौतें भारत में होती हैं। भारत में हर साल 2 लाख लोगों की मौत अस्थमा के कारण मौत होती है।

साथ ही कोविड-19 से पीड़ित रहे लोगों के लिए भी वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इस स्थिति में HEPA और कार्बन एयर प्यूरीफायर जैसे उपकरण इन मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकते हैं।

इसलिए आज जरूरत की खबर में बात करेंगे कि पटाखों और पराली का धुआं अस्थमा के मरीजों के लिए कितना खतरनाक है। साथ ही जानेंगे कि-

  • किन लोगों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए?
  • HEPA और कार्बन एयर प्यूरीफायर वायु प्रदूषण से कैसे बचाव करता है ?

सवाल- भारत में अस्थमा पीड़ितों की संख्या कितनी है?

जवाब- भारत में अस्थमा के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) के मुताबिक, भारत में लगभग 3.5 करोड़ से अधिक लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। यह संख्या विश्व के किसी अन्य देश के मुकाबले सबसे अधिक है। बच्चों और बुजुर्गों में इसके केस लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं।

भारत के शहरी क्षेत्रों में कंस्ट्रक्शन कार्यों और वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी पराली जलाने, लकड़ी और उपले का रसोई में उपयोग करने और प्रदूषण से जुड़े अन्य कारणों से अस्थमा के मरीजों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।

सवाल- पटाखों का धुंआ किन लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक है?

जवाब- पटाखों के धुएं में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक तत्व होते हैं। ये जहरीली गैसें सांस लेते समय फेफड़ों में पहुंच जाती हैं। अस्थमा और पोस्ट कोविड जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के साथ ही पटाखे का धुआं बूढ़ों, बच्चों और प्रेंग्नेंट महिलाओं को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

बच्चों के कमजोर इम्यून सिस्टम की वजह से पटाखों का धुआं बच्चों के लिए खतरनाक है। साथ ही यह बुजुर्गों के लिए भी हानिकारक है। बढ़ती उम्र की वजह से उनका स्वास्थ्य पहले से ही कमजोर होता है। ऐसे में प्रदूषित वायु उनके फेफड़े और गले को नुकसान पहुंचा सकती है। साथ ही प्रेंग्नेंसी के दौरान प्रदूषण के संपर्क में आने की वजह से गर्भ में बच्चे के विकास में बाधा पहुंच सकती है।

सवाल- पटाखों और पराली का धुआं शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाता है?

जवाब- पराली और पटाखे के धुएं में मौजूद जहरीले तत्व सांस की नली के जरिये फेफड़े पहुंचते हैं। यह जहरीले तत्व फेफड़े को नुकसान पहुंचाते हैं। पराली के धुएं में PM2.5 (पार्टीकुलेट मैटर) पाए जाते हैं।

यह कण 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटे होते हैं। इससे लोगों को सांस लेने में कठिनाई, सीने में जकड़न और खांसी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

कैलिफोर्निया एयर रिसोर्स बोर्ड (CARB की रिपोर्ट के मुताबिक, एयर पॉल्यूशन वाले एरिया में रहने वाले के लोगों की औसत आयु में कमी आ रही है। हाई लेवल के एयर पाल्यूटेड, खासतौर से PM2.5 (पार्टीकुलेट मैटर) के संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों की जीवन प्रत्याशा में 1.5 से 2 साल की कमी आई है।

इसके साथ ही ऐसे एरिया में रहने वाले लोगों में दिल और फेफड़ों जैसी हेल्थ प्रॉब्लम्स में वृद्धि दर्ज की गई है। पार्टीकुलेट मैटर 2.5 ऐसे कण हैं, जो हमारे बाल की मोटाई से तीस गुना छोटे होते हैं। यह कण हमारे फेफड़ों के भीतरी सतह पर जाकर जम जाते हैं। लंबे समय तक इनके संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर या अन्य गंभीर बीमरियां हो सकती हैं। इसके साथ ही यह हमारे मेंटल हेल्थ और इम्यून सिस्टम को कमजोर करते हैं। PM2.5 के संपर्क में लंबे समय तक रहने पर अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

सवाल- वायु प्रदूषण से बचने के लिए घर पर किस तरह की सावधानियां बरत सकते हैं?

जवाब- बढ़ते वायु प्रदूषण से खुद को सुरक्षित रखने के लिए यह उपाय अपनाए जा सकते हैं।

  • घर के खिड़कियों और दरवाजों को बंद रखें ताकि बाहर का प्रदूषण अंदर न आ सके।
  • जब बाहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) खतरनाक स्तर पर हो तो अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति घर के अंदर रहें।
  • घर के अंदर धूम्रपान न करें क्योंकि यह अस्थमा के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक होता है।
  • नमी बनाए रखने के लिए घर के अंदर ह्यूमिडिफायर का इस्तेमाल करें।
  • इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए ताजे फलों और हरी सब्जियों का सेवन करें।

सवाल- HEPA और कार्बन एयर प्यूरीफायर कैसे काम करता है?

जवाब- हाई एफिशिएंसी पार्टिकुलेट एयर (HEPA) और कार्बन एयर प्यूरीफायर हवा को साफ करने के लिए डिजाइन किए गए गैजेट्स हैं। बाजार में तो तमाम तरह के गैजेट्स मौजूद हैं, जो एयर प्यूरीफायर का काम करते हैं। हालांकि, सारे गैजेट्स HEPA और कार्बन फिल्टर से लैस नहीं होते हैं।

HEPA फिल्टर सिगरेट के फिल्टर 0.3 माइक्रोन तक के छोटे कण, सिगरेट के धुएं, पालतू पशुओं के फर और रूसी को फिल्टर करते हैं। जबकि कार्बन फिल्टर हवा से गंध को हटाने का करती है। ऐसे में यह एयर प्यूरिफायर अस्थमा मरीजों के लिए बेहद लाभदायक सिद्ध हो सकता है। आप अपने करीबियों को यह एयर फिल्टर गिफ्ट भी कर सकते हैं। बाजार में या ऑनलाइन आपको यह बेहद किफायती कीमतों पर खरीद सकते हैं।

सवाल- भारत में वायु प्रदूषण का स्तर कितना खतरनाक है?

जवाब- भारत के कई शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) मिड-ईयर के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2024 से लेकर जून 2024 के सर्वे में मेघालय का बर्नीहाट शहर देश का सबसे प्रदूषित शहर पाया गया। इसके बाद हरियाणा का फरीदाबाद, राजधानी दिल्ली, गुरुग्राम, बिहार के भागलपुर समेत कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक बहुत खराब पाया गया था। इस प्रदूषण के कारण लोगों में श्वसन संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।

सवाल- भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

जवाब- वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की शुरुआत की गई थी। इसमें 102 नॉन-अटैनमेंट शहरों के एयर क्वालिटी में सुधार किए जाने पर काम किया जा रहा है। इन सूची में ऐसे में शहरों को शामिल किया गया है, जो लगातार 5 वर्षों तक नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी इंडेक्स (NAAQS) मानकों को पूरा नहीं कर सके। इसमें 43 स्मार्ट शहर भी शामिल हैं। सरकार ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसके लिए अलग-अलग उद्योगों और क्षेत्रों के लिए नियम बनाए गए हैं। 17 बड़े प्रदूषणकारी इलाकों में 24×7 निगरानी के लिए ऑनलाइन उपकरण लगाए गए हैं। बायोमास जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि, इसके बावजूद भी उत्तर भारत के कई राज्यों में पराली जलाई जाती है। वायु गुणवत्ता मापने के लिए नेशलन एयर क्वालिटी इंडेक्स(AQI) की शुरुआत की गई है। सार्वजनिक परिवहन में मेट्रो और बस को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें कई और सुधार शामिल हैं, आइए जिन्हें ग्राफिक के जरिए समझते हैं-

…………………………… जरूरत की ये खबर भी पढ़िए जरूरत की खबर- दिल्ली में प्रदूषण बना जान का दुश्मन: हर साल घट रही उम्र, बचने के लिए अपनाएं ये उपाय

लैंसेट की एक स्टडी के मुताबिक दुनिया भर के 16% लोगों की मौत प्रदूषण के चलते समय से पहले ही हो जाती है। पूरे देश की बात करें तो रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लोगों की औसत उम्र प्रदूषण के चलते करीब पांच साल कम हो गई है। पूरी खबर पढ़िए…

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