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Exclusive: ‘ये वेकअप कॉल, सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट जरूरी…’ कोलकाता कांड पर बोले पद्मश्री अवार्डी डॉक्टर – Dr Ashok Seth said Central Protection Act is necessary Padmashree awardee doctor write letter to pm ntc

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कोलकाता में डॉक्टर के साथ हुई हैवानियत को लेकर देशभर में गुस्सा है. सुरक्षा की मांग को लेकर डॉक्टर्स सड़कों पर हैं. डॉक्टर्स के इस प्रदर्शन और सुरक्षा खामियों को लेकर फोर्टिस एस्कॉर्ट्स (Fortis Escort) हार्ट इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष और पद्मश्री सम्मानित डॉ. अशोक सेठ ने इंडिया टुडे से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि अब ये समय की मांग है कि सरकार को सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करना चाहिए.

‘डॉक्टर्स की सुरक्षा अहम’

इंडिया टुडे से बातचीत में डॉ अशोक सेठ ने कहा कि हम डॉक्टर्स समाज का अहम हिस्सा हैं. ये वक्त की मांग है कि हम इस तरह की घटनाओं पर सिर्फ चर्चा ही न करें बल्कि हमें इनपर सख्त एक्शन लेने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हेल्थकेयर वर्कर्स को लेकर लगभग हर राज्य में कानून हैं लेकिन ध्यान से देखा जाए तो इनमें कई खामियां हैं. इन्हें प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया है. इसलिए हमने पत्र लिखकर पीएम मोदी से ‘सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट’ को लागू करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि सरकार ने इसे लेकर शुरुआती कदम उठाए थे लेकिन अभी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

डॉक्टर अशोक सेठ ने हालिया घटना को वेकअप कॉल करार देते हुए कहा कि हेल्थकेयर वर्कर्स की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि उत्पीड़न के चलते महिला डॉक्टर्स सुसाइड कर रही हैं. इस तरह की दरिंदगी हो रही है. एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि करीब 6 महीने पहले एक महिला ने मुझसे कहा कि मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाना चाहती हूं, लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपने फैसले को अब वापस लेती हूं. 

क्यों जरूरी है सेंट्रल प्रोटेक्शन बिल?

अशोक सेठ ने बताया कि सेंट्रल प्रोटेक्शन बिल इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे पूरे देश में एक जैसा कानून लागू होगा. इससे कोई भी अलग नहीं रह जाएगा. भले ही वो किसी भी राज्य का क्यों न हो. राज्य में जो कमियां रह जाती हैं वो इस कानून के बाद दूर हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि हर राज्य में अलग-अलग कानून होने से दिक्कत आती है. ऐसे  में इस सेंट्रल प्रोटेक्शन बिल की जरूरत है. 

अब जानिए क्या है सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट जिसे लागू करने की उठ रही मांग

केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम (सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट) में बिना वारंट गिरफ्तारी, 5 लाख तक जुर्माना और 5 साल तक सजा का प्रावधान है. कानूनी जानकारों का भी तर्क है कि अगर राष्ट्रीय कानून लागू किया जाता है तो स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा गैर-जमानती अपराध बन जाएगी. इससे घटनाओं में कमी आ सकती है.

2022 में लोकसभा में पेश हुआ था बिल 

‘हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और क्लिनिकल प्रतिष्ठानों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम विधेयक, 2022’ को डॉक्टरों के लिए केंद्रीय संरक्षण अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है. इसे 2022 में लोकसभा में पेश किया गया था. इस प्रस्तावित कानून में हिंसा को परिभाषित किया गया है. 

केंद्रीय संरक्षण अधिनियम के प्रमुख प्रावधान क्या हैं? 

इस कानून का उद्देश्य डॉक्टरों, नर्सों, अन्य स्वास्थ्यकर्मियों और अस्पतालों को हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है. विधेयक में हिंसा को शारीरिक हमले, मौखिक दुर्व्यवहार, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और चिकित्सा कर्मियों के कार्य में अवरोध के रूप में परिभाषित किया गया है. 

– इस अधिनियम के तहत अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है और प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमा चलाया जा सकता है.

– प्रावधान है कि अगर कोई हिंसा करेगा या करने का प्रयास करेगा या उकसाएगा तो उसे जेल भेजा जाएगा, जो छह महीने से कम नहीं होगा, जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है. जुर्माना जो पांच हजार रुपये से कम नहीं होगा और पांच लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है.

 – नजदीकी पुलिस स्टेशन के साथ इंटरलॉकिंग समेत अस्पताल की सुरक्षा मजबूत की जाए. परामर्श फीस, टेस्ट रेट और अस्पतालों के अन्य खर्चों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए.

प्रस्तावित कानून की वर्तमान स्थिति क्या है? 

स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और क्लीनिकल प्रतिष्ठानों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम विधेयक, 2022 सदन में पेश किए जाने के बावजूद अभी तक कानून नहीं बनाया गया है. फरवरी 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने राज्यसभा को सूचित किया था कि स्वास्थ्य सेवा कार्मिक और क्लीनिकल प्रतिष्ठान (हिंसा और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का निषेध) विधेयक, 2019 का मसौदा तैयार किया गया था और परामर्श के लिए भेजा गया था, लेकिन अलग से कानून बनाने का फैसला नहीं किया गया है. 

यह भी पढ़ें: कोलकाता रेप-मर्डर केस: पद्म पुरस्कारों से सम्मानित 70 से ज्यादा डॉक्टरों का PM मोदी को पत्र, ठोस कार्रवाई की मांग

अभी फिलहाल महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 लागू है. ये 22 अप्रैल, 2020 को लाया गया. रोग (संशोधन) अधिनियम के तहत, हिंसा या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के कृत्य तीन महीने से पांच साल तक की कैद और 50 हजार रुपये से 2 लाख रुपये के बीच जुर्माने के साथ दंडनीय हैं. गंभीर चोट पहुंचाने के मामलों में छह महीने से लेकर सात साल तक की कैद और 1 लाख से 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. 

पद्म पुरस्कारों से सम्मानित 70 से ज्यादा डॉक्टरों का PM मोदी को पत्र

कोलकाता रेप-मर्डर मामले पर पद्म पुरस्कारों से पुरस्कृत 70 से ज्यादा डॉक्टरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मेडिकल क्षेत्र से जुड़े कर्मियों के खिलाफ बढ़ रही हिंसा पर चिंता जताई है. उन्होंने प्रधानमंत्री से इस गंभीर मुद्दे पर ठोस कार्रवाई करने की गुजारिश की है. डॉक्टरों द्वारा लिखी गई चिट्ठी में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा मौजूदा कानूनों के तहत सुनिश्चित करने की गुहार लगाई गई है. प्रधानमंत्री के नाम लिखे गए पत्र पर दस्तखत करने वालों में डॉ हर्ष महाजन, डॉ अनूप मिसरा, डॉ मोहसिन वली, डॉ प्रदीप चौबे, डॉ अशोक सेठ, डॉ रणदीप गुलेरिया, डॉ बलराम भार्गव, डॉ शिव कुमार सरीन, डॉ यश गुलाटी, आयुर्वेदाचार्य और डॉ देवेंद्र त्रिगुणा शामिल हैं.

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