4 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी
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बॉलीवुड एक्ट्रेस हिना खान का स्टेज 3 ब्रेस्ट कैंसर का इलाज चल रहा है। इस बीच उन्होंने सोशल मीडिया पर अपडेट दिया है कि वह एक और बीमारी म्यूकोसाइटिस (Mucositis) का सामना कर रही हैं। म्यूकोसाइटिस कीमोथेरेपी का ही एक साइड इफेक्ट है। हिना खान ने लिखा है कि इसके कारण उनका खाना-पीना मुश्किल हो गया है।
कैंसर ट्रीटमेंट के सबसे प्रभावी उपायों में से एक कीमोथेरेपी में दवाएं कैंसर कोशिकाओं को मारती हैं। इसके कई साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। म्यूकोसाइटिस इनमें से एक है। हमने कीमोथेरेपी के बारे में पहले भी विस्तार से बताया है।
म्यूकोसाइटिस एक ऐसी कंडीशन है, जिसमें मुंह या पेट में दर्द और सूजन हो जाती है। यह स्थिति आमतौर पर कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी या रेडिएशन के साइड इफेक्ट के कारण होती है। इसके कारण कुछ भी खाना-पीना बहुत मुश्किल हो जाता है। हालांकि थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो कैंसर का इलाज पूरा होने के कुछ हफ्ते बाद इस कंडीशन में सुधार होने लगता है।
इसके लक्षण कभी हल्के तो कभी गंभीर हो सकते हैं। इसे 4 श्रेणियों में बांटकर देखा जाता है। ग्रेड 1 और 2 में अपेक्षाकृत हल्के लक्षण होते हैं और ग्रेड 3 और 4 में लक्षण गंभीर होते हैं। मामला गंभीर होने पर कैंसर का इलाज रोकने की नौबत आ सकती है।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में म्यूकोसाइटिस की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- देश-दुनिया में कैंसर का क्या हाल है?
- म्यूकोसाइटिस के लक्षण और कारण क्या हैं?
- यह किन कंडीशंस में गंभीर हो सकता है?
- हीलिंग में किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?
देश-दुनिया में बढ़ रहे हैं कैंसर के मामले
दुनिया में सबसे अधिक मौतें कार्डियोवस्कुलर डिजीज के कारण होती हैं। इस मामले में कैंसर दूसरे नंबर पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक हर साल कैंसर के कारण करीब एक करोड़ लोगों की मौत होती है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि दुनिया में हर छठी मौत कैंसर की वजह से होती है।
बीते साल भारत सरकार ने राज्यसभा में कैंसर से संबंधित आंकड़े जारी किए। इसमें बताया गया था कि भारत में हर साल कैंसर के लगभग 14.6 लाख नए मामले दर्ज हो रहे हैं। देश में हर साल इसके कारण 8 लाख 8 हजार मौतें हो रही हैं।
कैंसर के लगातार बढ़ते मामलों का मतलब है कि हमारे आसपास इसके पेशेंट भी बढ़ते जाएंगे। फिर इसके ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट के रूप में म्यूकोसाइटिस भी हो सकता है क्योंकि कैंसर ट्रीटमेंट में यह सबसे कॉमन साइड इफेक्ट है। इसलिए इसके बारे में सामान्य जानकारी होना बहुत जरूरी है।
म्यूकोसाइटिस की समस्या किसे होती है
क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक, कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट लेने वाले लगभग 50% लोगों में म्यूकोसाइटिस डेवलप होता है। इसके अलावा रेडिएशन थेरेपी या बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplants) वाले 80% से 100% लोगों में म्यूकोसाइटिस डेवलप हो सकता है।
अगर कोई तंबाकू का सेवन करता है या शराब पीता है तो उसे म्यूकोसाइटिस अधिक प्रभावित करता है। यह किन कंडीशंस में खतरनाक हो सकता है, ग्राफिक में देखिए।
इसके लक्षण क्या हैं
म्यूकोसाइटिस दो तरह का होता है। अगर किसी को ओरल म्यूकोसाइटिस है तो इसके कारण मुंह में सफेद धब्बे या छाले हो जाते हैं। मुंह से खून बहने लगता है। इसके कारण सूजन, लालिमा और खराश हो जाती है। अगर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल म्यूकोसाइटिस हुआ है तो आंतों में सूजन, दर्द और अल्सर हो सकता है।
इसके अन्य लक्षण क्या हो सकते हैं, ग्राफिक में देखिए।
किन कंडीशंस में डॉक्टर से मिलना जरूरी होता है
म्यूकोसाइटिस की सबसे बड़ी समस्या दर्द है। इसके अलावा कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान शरीर बहुत कमजोर हो चुका होता है। उस पर भी म्यूकोसाइटिस के कारण कुछ भी खाना-पीना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कैंसर के साथ मिलकर ये हेल्थ कंडीशन मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। इसलिए इसके लक्षणों को इग्नोर नहीं करना चाहिए। ग्राफिक में देखिए कि किन स्थितियों में डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
म्यूकोसाइटिस का इलाज क्या है
आमतौर पर कैंसर का ट्रीटमेंट कोर्स पूरा होने के बाद म्यूकोसाइटिस अपने आप ठीक हो जाता है। कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट शुरू होने के एक से दो सप्ताह बाद म्यूकोसाइटिस के लक्षण दिखने शुरू होते हैं। हालांकि ये ट्रीटमेंट पूरा होने के लगभग एक से 6 हफ्ते के बाद ठीक भी हो जाता है।
अगर किसी कैंसर पेशेंट को रेडिएशन थेरेपी दी जा रही है तो म्यूकोसाइटिस के लक्षण ट्रीटमेंट शुरू होने के 2 से 3 सप्ताह बाद सामने आने शुरू होते हैं। इस मामले में लक्षण ट्रीटमेंट पूरा होने के 2 से 4 सप्ताह के भीतर ठीक हो जाते हैं।
हालांकि, रिकवरी के दौरान खाने-पीने से जुड़ी बातों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है। इसके लिए इस दौरान क्या खाना है और किन चीजों को अवॉइड करना है, ग्राफिक में देखिए।
इस बात की बहुत अधिक संभावना होती है कि कैंसर ट्रीटमेंट के कारण म्यूकोसाइटिस डेवलप होगा। हालांकि यह कितना गंभीर होगा, यह कई कारकों पर निर्भर करता है। किसी की ओवरऑल हेल्थ कैसी है, किस तरह का ट्रीटमेंट चल रहा है, ट्रीटमेंट के बाद हाइजीन का कितना ख्याल रखा गया है। इनमें से कुछ कारकों पर तो हमारा कोई वश नहीं होता है, लेकिन बुनियादी हेल्थ गाइडलाइंस का पालन करके इसके लक्षणों के कम करने में मदद मिल सकती है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि तंबाकू का सेवन न करें, धूम्रपान न करें और शराब से दूरी बनाएं। मुंह की साफ-सफाई यानी ओरल हाइजीन का ध्यान रखें और न्यूट्रिशन से भरपूर बैलेंस्ड डाइट लेते रहें।