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Psychological First Aid; Techniques For Managing Stress And Sadness | रिलेशनशिप- बांटने से कम हो सकता है 80% दुख: साइंस के मुताबिक स्ट्रेस और दुख दूर करने में मददगार है ‘साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड’

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12 मिनट पहलेलेखक: शैली आचार्य

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‘दर्द बांटने से कम होता है,’ यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। वाकई यह बात तो सच है, लेकिन क्या सभी अपना दर्द दूसरों से बांट पाते हैं। शायद हम में से बहुत कम लोग ही होंगे, जो अपना दर्द दूसरों के साथ शेयर कर पाते हैं। इसके पीछे कई निजी कारण हो सकते हैं।

जिंदगी में दुख आने पर हम अकेला महसूस करते हैं। हम खुद को लोगों से अलग-थलग कर लेते हैं। हमें वह मदद और साथ नहीं मिलता, जिसकी हमें जरूरत होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दूसरों से बात करना हमारे इमोशन्स को समझने और उनसे डील करने का एक प्रभावशाली तरीका हो सकता है।

‘शेयरिंग’ यानी साझा करना एक तरह की थेरेपी है, जो आपको डर, बचपन का सदमा, किसी को खोने का गम, फेल्योर जैसी तकलीफदेह भावनाओं से उबरने में मदद कर सकती है। लेकिन ये सब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ ही साझा कर सकते हैं, जिसके साथ आप अपनी परेशानी और दर्द को बताने में सुरक्षित महसूस करते हों।

लेकिन हम में से बहुत लोगों के पास ऐसे करीबी दोस्त या परिवार नहीं होते हैं। ऐसे में वो उन लोगों के साथ अपने दर्द को बांटते हैं, जो मदद पाने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे लोग आपको बैठकों, सहायता समूहों, विशेष संगठन और ऑनलाइन फोरम में मिल सकते हैं। इनमें आप अपनों और भरोसेमंद लोगों को खोज सकते हैं, जिनसे आप अपनी बात कह पाएं। इससे आपको बेहतर महसूस हो सकता है।

तो आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में हम बात करेंगे ‘पेन शेयरिंग’ यानी अपना दर्द साझा करने की। साथ ही जानेंगे कि किन लोगों से हम अपना दुख-दर्द शेयर कर सकते हैं। कैसे हम ऐसे लोगों की पहचान कर सकते हैं।

दुख में ही होती अपनों की पहचान

जीवन में दु:ख आने पर न सिर्फ व्यक्ति की ही परीक्षा नहीं होती है, बल्कि इसके आते ही आपको अपने और पराये का भी पता लग जाता है। एक पुरानी कहानी है, जिसमें एक बार दुख ने सुख से कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, लोग तुम्हें ही पाना चाहते हैं। तब सुख ने कहा, भाग्यशाली मैं नहीं बल्कि तुम हो क्योंकि तुम्हारे आते ही लोग अपनों को याद करने लगते हैं। इसके उलट जैसे ही मैं किसी के जीवन में प्रवेश करता हूं तो लोग अपनों को ही भूल जाते हैं।

इसलिए दुख की स्थिति ऐसी होती है, जिसमें अपनों की पहचान हो जाती है कि कौन आपका अपना है और कौन पराया। साथ ही आप अपने दुख को उनसे बांटकर कम भी कर सकते हैं।

एसोसिएशन फॉर साइकोलॉजिकल साइंस में पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक, दुख भले ही नकारात्मक और दर्दनाक होता है लेकिन वास्तव में यह आपको सकारात्मक परिणाम दे सकता है। यह एक प्रकार के ‘सोशल ग्लू’ के तौर पर काम करता है, जो समूहों के भीतर एकजुटता को बढ़ावा देता है।

ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक और शोधकर्ता ब्रॉक बास्टियन कहते हैं कि एक रिसर्च के मुताबिक, अपने दुख को जब हम लोगों से साझा करते हैं तो यह हमें लोगों के करीब लाने में भी मदद करता है। ऐसा करने से हम नए लोगों से भी मिल पाते हैं।

दुख-दर्द साझा करने से डेवलप होती इंपैथी

दर्द साझा करने से न केवल हमारे अंदर, लेकिन जिससे हम अपना दर्द बयां कर रहे हैं, उसमें भी इंपैथी डेवलप होती है। ‘इंपैथी’ का मतलब है, किसी दूसरे शख्स की जगह खुद को रखकर सोचने, समझने और उसकी नजर से दुनिया को देखने की सोच रखना। जब कोई शख्स खुद से बाहर निकलकर दूसरों की भावनाओं को समझने की कोशिश करे तो वह उसके प्रति इंपैथेटिक हो जाता है।

‘जर्नल ऑफ इंटरनल मेडिसिन’ में पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक रेगुलर इंपैथी प्रैक्टिस करने वालों के रिश्ते और उनकी पर्सनल वेलबीइंग ऐसा न करने वालों के मुकाबले बेहतर होती है। यह आंतरिक खुशी और किसी भी तरह के अवसाद को दूर करने में मदद करता है।

इंपैथी डेवलप करने के लिए ‘शेयर सॉरो’

इंपैथी को डेवलप करने के लिए ‘शेयर सॉरो’ को अपनाया जा सकता है। यानी अपने दुखों को साझा करना और सामने वाले को, उसके दुखों को सुनना और समझना। यानी कि खुशी हो या गम, दोनों ही साझा करना हमें अच्छा महसूस कराता है।

दुख दूर करने में मददगार ‘साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड’

मन का दुख कम करने के लिए मनोचिकित्सक सलाह देते हैं कि आपको ‘साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड’ का सहारा लेना चाहिए। यानी किसी अपने और करीबी से जाकर बात करना। अपना दर्द बांटना। इससे भी आपको उस मुश्किल वक्त और स्ट्रेस से बाहर निकलने में मदद मिलेगी।

अपने दुखों से भागें नहीं, उन्हें साझा करने का साहस रखें

हम अक्सर अपने विचारों और भावनाओं को डर के कारण दबा देते हैं। हमें दूसरों द्वारा जज किए जाने का डर रहता है। अपनी सबसे गहरी सच्चाई को संभालना बहुत मुश्किल हो सकता है और हमें उनका सामना करने की बजाय उनसे भागना आसान लगता है।

  • वहीं हमें दूसरे लोगों द्वारा अस्वीकार किए जाने का डर भी हो सकता है। हम अंदर-ही-अंदर खुद के कुछ हिस्सों को अस्वीकार कर रहे होते हैं।
  • हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करने का डर हो सकता है।
  • अपनी भावनाओं के बारे में खुद से ईमानदार होना और फिर उन्हें दूसरे लोगों के साथ साझा करना साहस की बात है। खासकर तब जब हमें चोट पहुंची हो, हमें आंका गया हो या हमारे साथ विश्वासघात हुआ हो।
  • कभी-कभी जब हम अपने बारे में कुछ साझा करते हैं तो हमें आलोचना और अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है।
  • हो सकता है कि हमें अपने किसी करीबी ने अस्वीकार कर दिया हो और हम अलग-थलग महसूस कर रहे हों। हमें चुप करा दिया गया हो या हमें किसी ने अकेला छोड़ दिया हो, जिससे खुद को व्यक्त करना भी मुश्किल हो जाता है।
  • ऐसे में हमें अपने आपको विश्वास दिलाना जरूरी है कि हम अपने डर से ज्यादा मजबूत हैं। यह हमें उस स्थिति से निकलने और अपनों के साथ बात साझा करने में मदद करता है।

दर्द साझा करना हमें बनाता है सशक्त और मजबूत

जब हम अपने दर्द का सामना करते हैं और उसे साझा करते हैं तो हम खुद को सशक्त और मजबूत बनाते हैं। अपनी कमजोरियों को साझा करना खुद पर भरोसा करने, अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाने और साहस के साथ अपने आपको आगे बढ़ाने की दिशा में एक बेहतर कदम है। लेकिन साझा करने के लिए भी अपने लोगों की पहचान जरूरी है। यानी कि जिससे आप अपनी बात कह सकें और वो आपकी बात अपने तक ही रख सके।

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