23 मिनट पहलेलेखक: शैली आचार्य
- कॉपी लिंक
शादी में लंबा वक्त साथ गुजारने के बाद अपने पार्टनर के साथ तलाक लेना किसी के लिए भी आसान नहीं होता। शादी टूटने का कारण चाहे कोई भी हो, ये पति-पत्नी दोनों के लिए आसान नहीं है। तलाक और भी ज्यादा मुश्किल तब हो जाता है, जब आप एक माता-पिता की भूमिका भी निभा रहे हों।
पिछले दिनों भारतीय क्रिकेटर हार्दिक पंड्या अपनी पत्नी नताशा स्टेनकोविक से अलग हुए। उनका एक बेटा भी है, जिससे दोनों बहुत प्यार करते हैं। हार्दिक ने सोशल मीडिया के जरिए अपने तलाक की घोषणा की थी, जिसमें उन्होंने लिखा, “चार साल साथ रहने के बाद नताशा और मैंने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला किया है। हमने साथ रहते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और हमें यकीन है कि यह हम दोनों के लिए अच्छा है। हालांकि यह हमारे लिए एक मुश्किल फैसला था।”
तलाक के बाद नताशा अपने बेटे अगस्त्य के साथ अपने देश सर्बिया चली गईं। वहां जाकर उन्होंने बेटे के साथ कुछ फोटो भी पोस्ट किए, जिस पर हार्दिक ने भी सुंदर और प्यार भरी प्रतिक्रिया दी।
हार्दिक पांड्या और नताशा इस बात का खूबसूरत उदाहरण हैं कि कैसे अलग होने के बावजूद भी माता-पिता अपने बच्चे की अच्छे से को-पेरेंटिंग कर सकते हैं।
तो आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में हम बात करेंगे तलाक के बाद को-पेरेंटिंग की। साथ ही काउंसलर से जानेंगे पेरेंटिंग के कुछ ऐसे टिप्स, जिससे बच्चे पर तलाक का कोई नकारात्मक असर न पड़े।
रिलेशनशिप काउंसलर अपर्णा देवल ने दैनिक भास्कर से इस विषय पर बात की और कुछ सुझाव भी दिए।
तलाक के बाद भी पेरेंट्स दोस्त बनकर रह सकते हैं
तलाक के बाद भी पार्टनर अपने एक्स के साथ फ्रेंडली बिहेवियर बनाए रख सकते हैं। इसके लिए जरूरत है थोड़ी समझदारी, आपसी अंडरस्टैंडिंग और भलमनसाहत की। पति-पत्नी पर भले निजी तौर पर इसका बहुत प्रभाव न पड़े, लेकिन बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और उसके वेलबीइंग के लिए यह बहुत जरूरी है।
अपर्णा देवल सुझाव देती हैं कि माता-पिता को अपना ध्यान व्यक्तिगत मतभेदों की बजाय सिर्फ अपने बच्चे के लिए एक प्यार भरा माहौल बनाने पर होना चाहिए। यह आपके बच्चे के लिए अच्छा होगा क्योंकि पेरेंट्स के अलग होने के बाद बच्चे अपने आपको अकेला महसूस करने लगते हैं। कई बार वे अपने इमोशन जाहिर भी नहीं कर पाते।
तलाक के बाद एक-दूसरे के जीवन में दखलंदाजी से बचें
सेपरेशन के बाद कपल को एक-दूसरे के मामलों में दखल देने से बचना चाहिए। अगर बात आपके बच्चे से जुड़ी हो, तो भी दखल देने की बजाय इस बारे में डिस्कस करके फैसले लेने चाहिए। एकतरफा फैसला नहीं करना चाहिए। इससे आपसी मतभेद नहीं होगा और दोनों संतुष्ट भी रहेंगे। बातचीत के लिए कुछ जरूरी लिमिट भी सेट की जा सकती है।
एजुकेशन रिसोर्सेस इन्फॉर्मेशन सेंटर (ERIC), अमेरिका के मुताबिक, डिवोर्स एक लंबी और स्ट्रेसफुल प्रक्रिया है। इसका असर मानसिक तौर पर बच्चों पर ज्यादा पड़ता है। स्टडी में बच्चों पर तलाक के प्रभावों का पता लगाया गया है। इस अध्ययन से पता चलता है कि प्री-स्कूल के बच्चों पर माता-पिता के तलाक का सबसे गहरा असर पड़ता है। वे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। माता-पिता के तलाक का असर बच्चों में उदासी, डर, चिड़चिड़ापन, स्ट्रेस, एंग्जायटी और इमोशनल इम्बैलेंस के रूप में सामने आता है।
तलाक के बाद कैसे करें को-पेरेंटिंग
सेपरेशन के बाद माता-पिता अलग रहते हैं, जिससे उनके लिए पेरेंटिंग और भी चैलेंजिंग हो जाती है। ऐसे में दूर रहकर को-पेरेंटिंग करनी होती है, जिसके लिए पेरेंट्स को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
अपने बच्चों के लिए सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए अपनाएं ये टिप्स-
झगड़े और विवाद से बचें
अपने बच्चों के सामने आप अपने एक्स-पार्टनर के साथ बहस करने या नकारात्मक बातें करने से बचें। ये उन पर नकारात्मक असर डाल सकता है। इसकी वजह से बच्चा अपने माता-पिता के बारे में मन में गलतफहमी भी रख सकता है।
बच्चे को मीडिएटर न बनाएं
तलाक लेने के बाद अगर माता-पिता एक दूसरे से बातचीत नहीं कर रहे हैं तो ऐसे में अपने बच्चे को मीडिएटर यानी मध्यस्थ बनाने से बचें। इसका बच्चे के दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है। रिश्ते को संभालने, समझदारी दिखाने और इमोशनली परिपक्व व्यवहार करने की जिम्मेदारी बड़ों की है, बच्चों की नहीं।
बच्चे को बताएं कि दोनों उसके लिए हमेशा मौजूद हैं
सेपरेशन के बाद या तो बच्चा अपनी मां के पास रहता है या पिता के साथ। ऐसे में वे किसी एक के साथ कम वक्त गुजार पाता है। इस स्थिति में माता-पिता को अपने बच्चे को ये यकीन और भरोसा दिलाना चाहिए कि माता-पिता दोनों ही उसके लिए हमेशा मौजूद हैं। वो भले इस वक्त फिजिकली साथ न हों, लेकिन उसे जब भी जरूरत होगी, वो साथ खड़े रहेंगे।
बच्चे से जुड़ा हर बड़ा फैसला दोनों मिलकर लें
माता-पिता अलग होने के बाद बच्चे से जुड़ा कोई भी फैसला अकेले न लें। यह फैसला हमेशा दोनों की मर्जी से होना चाहिए। अगर दोनों की इसमें सहमति न हो तो ऐसे में वे काउंसलर की मदद भी ले सकते हैं।
बच्चे से ओपन कम्युनिकेशन रखें
अपने बच्चों के साथ उनकी भावनाओं और चिंताओं के बारे में बात करें। आपके तलाक पर बच्चे की क्या राय है और वो क्या सोचता है, यह भी माता-पिता के लिए जानना जरूरी है।
बच्चे को दूसरे पेरेंट से मिलने से न रोकें
सेपरेशन के बाद कई बार देखा जाता है कि जिसके पास कस्टडी होती है, वो बच्चे को अपने एक्स-पार्टनर से मिलने या बात करने नहीं देता है। ऐसा करना भी बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुरा हो सकता है।
सकारात्मक माहौल बनाएं
तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी जिसके पास भी आई हो, उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा खुश रहे। जाहिर है सेपरेशन के बाद बच्चे को माता-पिता में से किसी एक की कमी महसूस होती है। इसे दूर करने के लिए बच्चे के लिए सकारात्मक माहैल बनना जरूरी है। अगर घर में तनाव होगा, अवसाद होगा तो उसका बच्चे के दिल-दिमाग बहुत बुरा असर पड़ेगा।
काउंसलर की सहायता लें: यदि को-पेरेंटिंग की चुनौतियां जरूरत से ज्यादा हो जाएं तो फैमिली डॉक्टर या काउंसलर की मदद ली जा सकती है।