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Relationship Stress and Anxiety; Signs And How to Overcome It | रिलेशनशिप- कोई रिश्ता परफेक्ट नहीं होता, बनाना पड़ता है: जब रिश्ते में होने लगे एंग्जाइटी तो सुनें एक्सपर्ट की ये 7 सलाह

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3 दिन पहले

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रोजमर्रा की जिंदगी में अक्सर स्ट्रेस-एंग्जाइटी यानी तनाव और थकान का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रिश्ते में भी स्ट्रेस और एंग्जाइटी का दौर आ सकता है।

इस स्थिति में पहुंचने के बाद बिना किसी ठोस वजह के रिश्ता बोझ लगने लगता है। ऑस्ट्रेलियाई क्लिनिकल रिलेशनशिप काउंसलर क्लिंटन पॉवर इसे रिश्तों में टूट की सबसे बड़ी वजह बताते हैं।

आज रिलेशनशिप कॉलम में रिश्ते में आने वाले स्ट्रेस, एंग्जाइटी और इनके बीच के अंतर की बात करेंगे। साथ ही इससे निकलने और रिश्ते को सुरक्षित रखने के उपाय भी जानेंगे।

छोटी गलतियों से रिश्ते में आता स्ट्रेस, लॉन्ग टर्म में बनता बोझ

ऑस्ट्रेलियाई रिलेशनशिप कोच क्लिंटन पॉवर अपनी किताब ‘31 डेज टू बिल्ड ए बेटर रिलेशनशिप’ में रिलेशनशिप स्ट्रेस और एंग्जाइटी के बीच का अंतर समझाते हैं।

क्लिंटन के मुताबिक आपसी समझ और इंपैथी की कमी के चलते रिश्ते में स्ट्रेस आता है। अगर यह स्ट्रेस लंबे समय तक बना रहे और इसे दूर करने की कोशिश न की जाए तो यह एंग्जाइटी में बदल जाता है। इस स्थिति में आकर रिश्ता बोझ लगने लगता है।

क्लिंटन पॉवर के मुताबिक रिश्ते में स्ट्रेस आना नॉर्मल है। इसे लंबे समय तक इग्नोर करने के बाद ही रिश्ता बोझ बनता है। आपसी संवाद और इंपैथी जैसे कुछ टिप्स को फॉलो करके इस स्ट्रेस को समय रहते दूर किया जा सकता है। इसे दूर करने के लिए क्लिंटन ये 7 टिप्स सुझाते हैं-

कम्युनिकेशन गैप रिश्ते में आए ठहराव की सबसे बड़ी वजह

क्लिंटन पॉवर के मुताबिक रोमांटिक रिश्ते में मुखरता काफी अहम होती है। पार्टनर्स अगर मुखर नहीं होंगे तो उनके बीच मिस-अंडरस्टैंडिंग की आशंका काफी ज्यादा होगी।

मुखरता के अभाव में इस बात की भी आशंका होगी कि वे एक-दूसरे को ठीक तरीके से समझ ही न पाएं और उनका रिश्ता कभी मजबूत न बन पाए। कम्युनिकेशन गैप रिश्ते को कमजोर करता है। बावजूद इसके ज्यादातर रिश्तों में लोग मुखरता से किनारा कर चुप्पी का सहारा लेते हैं।

इस चुप्पी की कई वजहें हो सकती हैं। कई बार पार्टनर्स ऐसा सोचते हैं कि वे कुछ कहेंगे तो दूसरा पार्टनर बुरा मान जाएगा या फिर बेवजह तनाव होगा। कई मौकों पर तो वे अपनी बात कहने का साहस ही नहीं जुटा पाते या सही मौके की तलाश में ही वक्त गुजार देते हैं।

ऐसी स्थिति में कोई एक पार्टनर मन-ही-मन घुटने लगता है। उसके मन में गुस्सा और नाउम्मीदी घर करने लगती है। एक समय बाद उन्हें एहसास होता है कि इस रिश्ते के लिए उन्होंने जरूरत से ज्यादा समझौता कर लिया है।

रिश्ते का छोटा सा स्ट्रेस, जिसे आपसी बातचीत के सहारे आसानी से दूर किया जा सकता था, वह समय के साथ रिलेशनशिप एंग्जाइटी का रूप ले लेता है। यह स्थिति रिश्ते के लिए ज्यादा नुकसानदेह होती है। इस स्थिति में पहुंचने के बाद समझौते की गुंजाइश भी खत्म-सी हो जाती है।

इसलिए बेहतर है कि समय रहते आपसी कम्युनिकेशन की मदद से रिश्ते में आए किसी भी तनाव को दूर कर लिया जाए। छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करने और मन-ही-मन घुटने से अच्छा है कि पार्टनर के साथ मिलकर हेल्दी तरीके से इससे डील करें।

पार्टनर की अच्छाइयों को याद करें, उनकी मजबूती बताएं

स्ट्रेस-एंग्जाइटी की वजह से रिश्ते में आए ठहराव को खत्म करने और नई जान फूंकने के लिए क्लिंटन पॉवर दो सबसे जरूरी चीजें बताते हैं। उनकी मानें तो पार्टनर की छोटी-छोटी बातों को लगातार एप्रिशिएट करते रहें तो रिश्ते में ताजगी आती है।

इसके अलावा एक-दूसरे के स्ट्रांग पॉइंट को समझना और उसका सम्मान जरूरी है। अगर कोई पार्टनर किसी मुद्दे पर अपनी स्पष्ट और मजबूत राय रखता है तो दूसरे को चाहिए कि उस राय का सम्मान करे और खुद के लिए भी ऐसी ही उम्मीद रखे।

फिजिकल और इमोशनल इंटिमेसी बनाए रखना जरूरी

रिलेशनशिप स्ट्रेस को कम करने के लिए पार्टनर्स का इमोशनली एक-दूसरे के करीब महसूस करना भी जरूरी है। रिश्ते में ऐसा महसूस न हो कि रोमांस का दौर बीत चुका है। यह सोच रिलेशनशिप एंग्जाइटी को बढ़ावा देती है।

इससे बचने के लिए रेगुलर रोमांटिक डेट और पर्सनल स्पेस का सहारा लिया जा सकता है। अगर शादी के बाद कोई जोड़ा रिलेशनशिप स्ट्रेस या एंग्जाइटी से जूझ रहा है तो वह इमोशनली इंटिमेसी बढ़ाने के लिए अपने पुराने दिनों को याद कर सकता है। जहां वह पहली बार मिले थे, कोई यादगार रेस्टोरेंट या कोई तोहफा इस बारे में कारगर साबित हो सकता है।

साथ मिलकर देखें सपने, बनाएं लक्ष्य तो रिश्ता बनेगा अटूट

साझी जिम्मेदारी, साथ मिलकर निर्धारित किए गए लक्ष्य और साथ में देखे गए सपने ही रिश्ते को स्थायित्व देते हैं। रिश्ते में अगर टीम भावना न हो तो छोटा-मोटा तनाव भी रिलेशनशिप एंग्जाइटी का रूप ले लेता है। टीम भावना के अभाव में पार्टनर्स सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। वे दूसरे पार्टनर या रिश्ते की जरूरतों को नजरअंदाज करते हैं।

वहीं, टीम भावना हो तो पार्टनर्स रिश्ते को साझी जिम्मेदारी के बतौर देखते हैं। ऐसी स्थिति में वे किसी भी समस्या को टीम के बतौर सुलझाने के लिए भी तैयार रहते हैं।

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