7 मिनट पहलेलेखक: शैली आचार्य
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अमेरिकन राइटर शेरिल स्ट्रेड की एक किताब है- ‘द वाइल्ड: फ्रॉम लॉस्ट टू फाउंड टू पैसिफिक क्रेस्ट ट्रेल।’ यह किताब काफी समय तक न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्टसेलर लिस्ट में शामिल रही। यह किताब एक 26 साल की लड़की की पूरे पैसिफिक क्रेस्ट ट्रेल की अकेले यात्रा की कहानी है।
एक दिन वह लड़की अपनी पीठ पर बैग टांगकर निकल जाती है। वो तकरीबन ढ़ाई सौ किलोमीटर के ऊंची पहाड़ी रास्ते पर महीनों अकेले पैदल चलती रहती है। उसे हाइकिंग का कोई अनुभव नहीं है। उसके साथ कोई मदद या सपोर्ट भी नहीं है।
वो अकेले पहाड़ों, जंगलों, दर्रों और छोटी-छोटी नदियों से गुजरती हुई अपनी यात्रा तय करती है। अकेले की गई यह यात्रा उसे पूरी तरह से बदल देती है। 2014 में इस किताब पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनी, जिसे ऑस्कर के लिए नॉमिनेट किया गया।
सिर्फ शेरिल स्ट्रेड ही नहीं, ऐसे कई लोग और भी हैं, जिनकी जिंदगी सोलो ट्रैवलिंग ने बदल दी। जैसेकि एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने यह साबित कर दिया कि जिंदगी भरपूर जीने के लिए उम्र की सीमा नहीं होती। 65 की उम्र में उन्होंने पहली सोलो ट्रिप की। हाल ही में वे ग्रीस घूमकर आईं और यह उनके लिए जीवन को बदल देने वाला एक अनुभव था।
वहीं बॉलीवुड के वेटरन एक्टर पंकज त्रिपाठी भी यही मानते हैं कि सोलो ट्रैवलिंग जरूरी है। बिना यात्रा वे खोया हुआ महसूस करते हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “12वीं के बाद हर बच्चे को कम-से-कम पैसों में पूरे भारत का टूर जरूर करना चाहिए। निश्चित ही यह आपको बदल देगा। यह आपको कुछ बेहतर बना सकता है। मैं भारत बहुत घूमा हूं और अभी भी मुझे नदी के उद्गम से लेकर अंत तक का छोर देखना है।”
तो आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में बात करेंगे सोलो ट्रैवलिंग और उससे जुड़े फायदों की। साथ ही हम बात करेंगे-
- सोलो ट्रैवलिंग कैसे जिंदगी और दुनिया को देखने का नजरिया बदल सकती है।
- सोलो ट्रैवलिंग करते वक्त क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
सोलो ट्रैवलिंग कैसे बदल सकती है आपकी जिंदगी
‘सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां
जिंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां।।’
ख्वाजा मीर दर्द का यह शेर ट्रैवलिंग यानी घूमने के अर्थ को बखूबी बयां करता है। अक्सर हम परिवार के साथ, दोस्तों के साथ या अपने पार्टनर के साथ किसी टूरिस्ट प्लेस पर घूमने जाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो बिलकुल अकेले ट्रैवल करना पसंद करते हैं या फिर इसे करने का साहस रखते हैं।
कुछ लोग सोलो ट्रैवल करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते हैं। कुछ पहाड़ों पर जाकर, समंदर किनारे बैठकर प्रकृति को करीब से देखना चाहते हैं, लेकिन उनका काम और जिम्मेदारियां उन्हें ऐसा करने नहीं देते। या फिर वो इसे न करने का कोई बहाना ढूंढ लेते हैं।
लेकिन सारे कामों और जिम्मेदारियों के बीच भी एक छोटी सी शुरुआत तो की जा सकती है। जरूरत है तो बस एक छोटी-सी कोशिश की, अपना पहला कदम बढ़ाने की।
शुरुआत एक छोटी (2-3 दिन की) सोलो ट्रिप से की जा सकती है। यह ट्रिप किसी भी जगह हो सकती है, जो आपकी लोकेशन के पास हो। आप वहां पहले कभी नहीं गए हों और उस जगह के बारे में जानना चाहते हों। जब आप वहां जाएंगे, तभी आप उस खूबसूरत एहसास को महसूस कर सकते हैं। उसके बाद आप अपनी जिंदगी में एक सकारात्मक बदलाव देख पाएंगे।
आजादी का एहसास होता है
सोलो ट्रैवलिंग में आप अकेले ट्रैवल कर रहे होते हैं। यह आपको आजादी का एहसास कराता है क्योंकि आप कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं। आपको किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता। किसी और के अनुसार घूमने की जगह, वक्त, खाना और अन्य चीजें नहीं तय करनी पड़ती हैं। आप अपना हर फैसला लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं और हर उस फैसले के लिए जिम्मेदार भी होते हैं।
इसीलिए कहते हैं न कि आजादी के साथ-साथ जिम्मेदारी भी आती है।
सोलो ट्रैवलिंग सिखाती आत्मनिर्भरता का पाठ
सोलो ट्रैवलिंग आपको अपनी प्रॉब्लम्स को खुद हल करने और अपनी यात्रा के हर पहलू पर नियंत्रण रखने की सीख देती है। जब आप ट्रैवलिंग के दौरान सारे काम खुद करते हैं तो उसके बाद जीवन में भी अपने काम खुद करने लगते हैं।
कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना और दुनिया देखना
अकेले ट्रैवल करने से आपको नए कौशल सीखने का मौका मिलता है। आप अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलते हैं। आपको यात्रा के दौरान अन्य लोगों से मिलने-जुलने का मौका मिलता है। कुछ लोग तो अपना लाइफ पार्टनर भी सोलो ट्रिप पर खोज लेते हैं।
सोलो ट्रैवल आपको खुद से मिलवाता है
जब आप रोजमर्रा की जिंदगी, भीड़, ऑफिस और घर के काम से बहुत दूर किसी सुकूनभरी जगह पर वक्त बिताते हैं तो यह आपको खुद से मिलने का मौका देता है। आप शांत मन से अपने अंदर चल रहे कई सवालों के जवाब खोज पाते हैं। कई बार आप अपने अंदर छिपे टैलेंट को भी खोज पाते हैं।
वर्ष 2010 की अमेरिकन रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘ईट प्रे एंड लव’ भी सोलो ट्रैवल के महत्व को दिखाती है। इसमें जूलिया रॉबर्ट्स ने एलिजाबेथ गिल्बर्ट की भूमिका निभाई है, जिसे लगता था कि उसके पास जीवन में वह सबकुछ है, जो वह चाहती थी- घर, पति और एक सफल करियर। फिर अचानक से तलाक होने के बाद उसे पता ही नहीं है कि जीवन में वाकई क्या जरूरी है। अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाते हुए वो इटली, भारत और बाली घूमने जाती है। इस सोलो ट्रैवलिंग के बाद वो खुद को खोज पाती है। यह फिल्म एलिजाबेथ गिल्बर्ट की इसी नाम से लिखी किताब पर आधारित है।
सोलो ट्रिप के फायदों को थोड़ा विस्तार से समझिए-
- जब आप अकेले घूमने जाते हैं तो सबसे अच्छी बात यह होती है कि आप पर किसी और को साथ ले जाने, किसी की जिम्मेदारी उठाने, किसी के हिसाब से अपना प्लान बनाने की जरूरत नहीं होती।
- आप अपने फैसले, जगह, आने-जाने का समय सब खुद डिसाइड कर सकते हैं। आपको किसी और के टाइम के मुताबिक अपना टाइम नहीं मैनेज करता पड़ता।
- जब हम दूसरों के साथ घूमने जाते हैं तो हमें होटल में स्टे, खाने-पीने और घूमने का बजट, सब उनके मुताबिक तय करना होता है। लेकिन सोलो ट्रैवल में यह सब प्रॉब्लम नहीं होती है।
- इसमें आप पूरा दिन अपने मन-मुताबिक गुजार सकते हैं। किसी और के नखरे और ईरिटेटिंग हैबिट्स झेलने की कोई मजबूरी नहीं होती।
सोलो ट्रैवलिंग से पहले ये सावधानियां जरूरी
सोलो ट्रैवल जितना आसान लगता है, उतना है नहीं क्योंकि इस दौरान कुछ सावधानियां भी बरतनी जरूरी हैं। जब भी आप सोलो ट्रैवल प्लान करें तो नीचे ग्राफिक में लिखी बातों को जरूर ध्यान में रखें और सावधानी, समझदारी और जिम्मेदारी के साथ कदम उठाएं।
तो देर किस बात की है। अगर आप घूमने की सोच रहे हैं तो सोलो ट्रैवल के लिए तैयार हो जाएं। लेकिन ऊपर दी गई जरूरी सावधानियां बरतना न भूलें।