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Thalassemia Test Kya Hai; Symptoms (Prevention and Treatment) | सेहतनामा- बेबी प्लानिंग से पहले कराएं थैलेसीमिया टेस्ट: जैकी श्रॉफ की सलाह, इस आनुवंशिक बीमारी से बचाव करें, क्या सावधानियां जरूरी

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6 दिन पहलेलेखक: गौरव तिवारी

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बॉलीवुड एक्टर जैकी श्रॉफ अपने अलग अंदाज और किरदारों के लिए जाने जाते हैं। मुंबइया अंदाज में उनकी बातचीत के सभी कायल हैं। वह इन दिनों लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरुक कर रहे हैं।

हाल ही में अंबानी फैमिली के वेडिंग फंक्शन में वह एक पौधा लेकर गए तो उनकी फोटो वायरल हो गई। कुछ लोगों ने मजाक बनाया तो कुछ ने सराहना भी की। वह योग दिवस के दिन भी हाथ में एक पौधा लिए हुए दिखे थे। लोगों से अपनी सांसों का ध्यान रखने को कह रहे थे। वह कई बार पारंपरिक भोजन करने की सलाह देते भी दिख जाते हैं।

हाल ही में एक यूट्यूबर के साथ बातचीत में उन्होंने सभी कपल्स को प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले थैलेसीमिया (Thalassemia) टेस्ट करवाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि अगर माता और पिता थैलेसीमिया माइनर हैं तो बच्चा थैलेसीमिया मेजर के रूप में पैदा होगा। इसका मतलब है कि बच्चे को जिंदगी भर हर 15 दिन में नए खून की जरूरत पड़ेगी।

थैलेसीमिया ऐसी बीमारी है, जो हमारे शरीर की हीमोग्लोबिन और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) के उत्पादन की क्षमता को प्रभावित करती है। इससे एनीमिया की स्थिति बन सकती है। कई बार कंडीशन गंभीर भी हो सकती है।

इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे थैलेसीमिया की। साथ ही जानेंगे कि-

  • इस कंडीशन का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  • थैलेसीमिया का खतरा किन लोगों को है?
  • इसके के लक्षण और कारण क्या हैं?
  • इसका इलाज क्या है?

थैलेसीमिया क्या है

यह एक वंशानुगत ब्लड डिसऑर्डर है। यह हमारे शरीर की हीमोग्लोबिन बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है। लाल रक्त कोशिकाओं में एक प्रोटीन होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। खून के जरिए पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम इसी प्रोटीन का है। इससे शरीर की अन्य कोशिकाओं को पोषण मिलता है।

अगर किसी को थैलेसीमिया है तो उसकी बोन मैरो लाल रक्त कोशिकाएं कम बना पाएगी। इसका नतीजा यह होगा कि एनीमिया की स्थिति बन जाएगी। इसके अलावा ऑक्सीजन से वंचित होकर शरीर की अन्य कोशिकाओं की ऊर्जा कम हो जाएगी। यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है।

थैलेसेमिया जन्मजात बीमारी है। इसका मतलब है कि इसका हमारी लाइफस्टाइल से कोई सीधा संबंध नहीं है। हालांकि हमारी लाइफस्टाइल का इसके लक्षणों पर सीधा असर पड़ता है।

इसके लक्षण क्या हैं

थैलेसीमिया के लक्षण इसके लेवल और प्रकार के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। इनमें से कुछ लक्षण आम हैं।
ग्राफिक में देखिए।

थैलेसीमिया होने के क्या कारण हैं

  • हीमोग्लोबिन में 4 प्रोटीन चेन होती हैं। इसमें 2 अल्फा ग्लोबिन चेन और 2 बीटा ग्लोबिन चेन होती हैं। प्रत्येक चेन में यानी अल्फा और बीटा दोनों में आनुवांशिक जानकारी या जीन शामिल होते हैं। ये हमें हमारे माता-पिता से मिलते हैं।
  • इन जीन को एक कार के चार पहियों की तरह सोचिए। इसमें हर पहिए की अपनी उपयोगिता है। अगर इनमें से किसी भी एक पहिये की हवा निकाल दी जाए तो कार सही से नहीं चल पाएगी। यह बहुत दूर तक भी नहीं चल पाएगी। कार की ही तरह हीमोग्लोबिन की प्रोटीन चेन में शिकायत होने पर लाल रक्त कोशिकाएं कम और कमजोर पड़ जाती हैं। इस कंडीशन को थैलेसीमिया कहते हैं।
  • यह डिसऑर्डर तब होता है, जब हीमोग्लोबिन उत्पादन में शामिल जीन में से किसी एक में असामान्यता या डिफेक्ट होता है। यह आनुवांशिक असामान्यता हमें अपने माता-पिता से विरासत में मिलती है।
  • यदि माता-पिता में से केवल एक को थैलेसीमिया है तो बच्चे में थैलेसीमिया माइनर विकसित हो सकता है। ऐसी स्थिति में आमतौर पर लक्षण नहीं विकसित होते हैं, लेकिन यह बीमारी बच्चों में ट्रांसफर हो सकती है। थैलेसीमिया माइनर वाले कुछ लोगों में मामूली लक्षण विकसित होते हैं।
  • अगर माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया है तो बीमारी का अधिक गंभीर रूप विरासत में मिलने की अधिक संभावना है। ऐसी स्थिति में गंभीर एनीमिया हो सकता है। बच्चे का विकास बाधित हो सकता है।

थैलेसीमिया कितने प्रकार का होता है

यह बीमारी मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है।

  • बीटा थैलेसीमिया
  • अल्फा थैलेसीमिया
  • थैलेसीमिया माइनर

इन सभी के लक्षणों और गंभीरता में फर्क हो सकता है।

थैलेसीमिया और एनीमिया

थैलेसीमिया होने पर लाल रक्त कोशिकाओं और हीमोग्लोबिन की सामान्य प्रोडक्टिविटी में कमजोरी आती है। इसलिए इसके कारण जल्दी ही एनीमिया की स्थिति बन सकती है। चूंकि लाल रक्त कोशिकाएं हमारे शरीर के सभी टिश्यूज और अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होती हैं, इसलिए इन कोशिकाओं की कम संख्या का मतलब है कि शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं होगी।

एनीमिया कभी हल्का तो कभी गंभीर हो सकता है। एनीमिया के निम्न लक्षण हैं।

थैलेसीमिया के कॉम्प्लिकेशन क्या हैं

हमारे शरीर में आयरन की अधिकता हो सकती है। ऐसा बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण या फिर बीमारी के कारण हो सकता है। बहुत अधिक आयरन हमारे हार्ट, लिवर और एंडोक्राइन सिस्टम को डैमेज कर सकता है। एंडोक्राइन सिस्टम में कई ग्लैंड्स होती हैं, जो कई हार्मोन्स के प्रोडक्शन के लिए जिम्मेदार हैं। ये हमारे शरीर की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती हैं। इसमें समस्या आने मतलब है कि इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ेगा।

किन्हें हो सकती है यह बीमारी

क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक, अगर माता-पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया है तो बच्चे को माइनर थैलेसीमिया हो सकता है। अगर माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया है तो 25% बच्चों को मेजर थैलेसीमिया होने की आशंका होती है। इसमें 25% बच्चे सामान्य हो सकते हैं। वहीं 50% को माइनर थैलेसीमिया की आशंका होती है।

इसका इलाज क्या है

आमतौर पर थैलेसीमिया माइनर के लिए किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है। अगर लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव कर लिए जाएं तो बहुत सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। कई थैलेसीमिया माइनर वाले लोगों को तो पूरी जिंदगी जीने के बाद भी ये अंदाजा नहीं होता है कि उन्हें थैलेसीमिया है। एनीमिया के हल्के लक्षण होने पर फोलिक एसिड के सिरप भी स्वस्थ रक्त कोशिकाएं बनाने में मदद कर सकते हैं।

  • थैलेसीमिया मेजर के लिए मानक उपचार ब्लड ट्रांसफ्यूजन और आयरन केलेशन हैं। ब्लड ट्रांसफ्यूजन में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं और हीमोग्लोबिन का लेवल सामान्य करने के लिए लाल रक्त कोशिकाओं के इंजेक्शन दिए जाते हैं।
  • अगर किसी शख्स को मध्यम या गंभीर थैलेसीमिया है तो उसे हर 4 महीने में और बीटा थैलेसीमिया मेजर के लिए हर 2 से 4 सप्ताह में ब्लड ट्रांसफ्यूजन करवाना होता है।
  • आयरन केलेशन में हमारे शरीर से अतिरिक्त आयरन को निकाला जाता है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन के साथ एक जोखिम यह भी है कि इससे शरीर में आयरन की अधिकता हो सकती है। बहुत अधिक आयरन हमारे कई महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए जिसे बार-बार रक्त चढ़ाया जा रहा है, उसे आयरन केलेशन थेरेपी की भी जरूरत पड़ती है।
  • बहुत गंभीर मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट भी इसका उपाय है।
  • थैलेसेमिया होने पर हमें रेगुलर हीमोग्लोबिन और ब्लड टेस्ट करवाना जरूरी है।
  • इसका सबसे बेहतर उपाय है कि प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले थैलेसीमिया टेस्ट करवाया जाए। इसका पता लगने पर डॉक्टर की मदद से इस कंडीशन को अवॉइड किया जा सकता है।

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