5 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी
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एक ऐसी दुनिया की कल्पना करिए, जहां सिर्फ महिलाएं-ही-महिलाएं होंगी। उनकी अपनी बनाई दुनिया, जहां उनकी हुकूमत और उनके ही उसूल होंगे। उस दुनिया कोई मर्द नहीं होगा।
क्या ऐसा हो सकता है? सुनने में तो ये डिस्टोपिया लगता है, लेकिन विज्ञान इस बारे में कुछ और ही इशारा कर रहा है।
‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर साइंसेज’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, जैसे-जैसे दुनिया आगे बढ़ रही है, उसके साथ ही इंसानों में Y क्रोमोजोम (Chromosome) का आकार घटता जा रहा है। ऐसी ही एक स्टडी प्रतिष्ठित साइंस जर्नल ‘नेचर’ में भी पब्लिश हुई थी। इन स्टडीज के बाद से Y क्रोमोजोम की विलुप्ति पर चर्चा ने जोर पकड़ लिया है।
असल में इंसानों में कोई पुरुष बनेगा या महिला, इसका निर्धारण क्रोमोजोम्स ही करते हैं। अगर दो X क्रोमोजोम्स हैं (XX) तो उसका जेंडर फीमेल होगा। अगर क्रोमोजोम्स X और Y हैं (XY) तो जेंडर मेल होगा। कुल मिलाकर क्रोमोजोम्स ही जेंडर निर्धारण के लिए जिम्मेदार हैं।
इस स्टडी के आधार पर वैज्ञानिक मान रहे हैं कि जिस तरह Y क्रोमोजोम का आकार घटता जा रहा है, इससे संभावना बन सकती है कि एक दिन यह क्रोमोजोम पूरी तरह विलुप्त हो जाए और इस धरती पर पुरुष पैदा होना बंद हो जाएं। फिर पुरुषों की आखिरी पीढ़ी के बाद पूरी मानव जाति का भी विनाश हो जाएगा।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में Y क्रोमोजोम से जुड़ी इस स्टडी की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- Y क्रोमोजोम के विलुप्त होने की आशंका कब तक है?
- क्या इंसानों के बचने की कोई उम्मीद भी है?
दो तरह के चूहों की प्रजाति खो चुकी है Y क्रोमोजोम
इंसानों और अन्य स्तनधारी जीवों में बच्चे के लिंग का निर्धारण Y क्रोमोजोम में मौजूद एक जीन करता है। इसलिए उस जीन को पुरुष-निर्धारण जीन और Y क्रोमोजोम को पुरुष-निर्धारण क्रोमोजोम कहते हैं। लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी यह क्रोमोजोम धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है और आशंका जताई जा रही है कि कुछ लाख सालों बाद यह गायब हो जाएगा। इससे इंसानों की प्रजाति विलुप्त होने का भी खतरा है। इससे पहले भी दो तरह के चूहों की प्रजातियों का Y क्रोमोजोम विलुप्त हो चुका है।
पूरी बात को ग्राफिक के जरिए आसानी से समझिए।
धरती पर सभी जीवों में समय के साथ आते हैं बदलाव
धरती पर जन्मे सभी जीवों में समय के साथ कुछ बदलाव आते रहते हैं। ये बदलाव उस समय की जरूरत के अनुसार आते हैं। इसे इस तरह समझिए जैसे इंसानों की शुरुआती प्रजाति बंदरों जैसी थी। उनके चार पैर और एक पूंछ होती थी। जैसे-जैसे समय बीता तो आगे के दो पैर हाथ बन गए, पूंछ छोटी होकर गायब हो गई। पहले हाथ और पैर के पंजों में सभी उंगलियां बराबर होती थीं। समय बीतने के साथ जरूरत के अनुसार जिन उंगलियों का इस्तेमाल कम होता था, वे छोटी होती चली गईं।
ये कुछ ऐसे बदलाव हैं, जो हमारे शरीर में नजर आते हैं। जबकि बहुत सारे बदलाव हमारे शरीर के भीतर माइक्रो लेवल पर भी हो रहे होते हैं। उनमें से एक महत्वपूर्ण बदलाव जीन का है। हमारे Y क्रोमोजोम में मौजूद कई जीन खत्म होते जा रहे हैं। इससे इसका आकार छोटा होता जा रहा है।
स्टडी में क्या सामने आया?
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर साइंसेज में पब्लिश स्टडी के मुताबिक, इंसानों और प्लैटिपस के अलग होने के बाद से लगभग 17 करोड़ वर्षों में Y क्रोमोजोम में मौजूद सक्रिय जीन बड़ी संख्या में खत्म हो गए हैं। ये 900 से घटकर सिर्फ 55 ही रह गए हैं। जिस रफ्तार से ये खत्म हो रहे हैं, यही सिलसिला जारी रहा तो अगले 1 करोड़ साल में Y क्रोमोजोम पूरी तरह से गायब हो सकता है। स्टडी को ग्राफिक के जरिए आसानी से समझिए।
इंसानों के लुप्त होने की इस आशंका ने वैज्ञानिकों के बीच बहस छेड़ दी है। कुछ वैज्ञानिक मान रहे हैं कि Y क्रोमोजोम अनिश्चित काल तक चलेगा तो कुछ का मानना है कि यह कुछ हजार वर्षों में ही गायब हो जाएगा।
चूहों पर की गई स्टडी ने जगाई है उम्मीद
जापान की होकाइडो यूनिवर्सिटी में बायलॉजिस्ट असतो कुरोइवा के नेतृत्व में रिसर्चर्स ने पाया कि कांटेदार चूहों में अधिकांश Y क्रोमोजोम जीन किसी अन्य क्रोमोजोम से स्थानांतरित हो गए थे।
रिसर्चर्स को पता चला कि ये चूहे Y क्रोमोजोम समाप्त होने के बाद भी जीवित बने रहे। इसकी वजह ये है कि Y क्रोमोजोम में मौजूद सभी जीन किसी तीसरे क्रोमोजोम में स्थानांतरित हो गए। यह क्रोमोजोम सभी पुरुष चूहों में मौजूद हैं, लेकिन महिलाओं में अनुपस्थित हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक विकास की प्रक्रिया भर है। अगर एक क्रोमोजोम विलुप्त होगा तो कोई अन्य मेल स्पेसिफिक क्रोमोजोम उसका स्थान ले लेगा यानी ऐसा क्रोमोजोम, जो सिर्फ मेल जेंडर में होगा।
जीने की इच्छा ही हमें जिंदा रखती है
विज्ञान और अध्यात्म से परे एक सिद्धांत है कि सर्वाइवल किसी को भी जिंदा रख सकता है। हमारी जीने की इच्छा ही हमें जीवित रखती है। इस समय इंसानों के Y क्रोमोजोम की संभावित हानि एक चिंता का विषय बनी हुई है। जबकि चूहों के ऊपर किया गया यह शोध आशा और उम्मीद भी जगा रहा है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारी इंसानी प्रजाति भी संभावित रूप से एक नया लिंग-निर्धारण जीन विकसित कर सकती है, जिससे पुरुषों के उत्पादन की निरंतरता सुनिश्चित हो जाएगी।
हालांकि कई वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी भी दी है कि इस तरह के विकासवादी परिवर्तनों से इंसानों में कई लिंग-निर्धारण प्रणालियों का उदय हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से कई नई प्रजातियों का निर्माण भी हो सकता है।
कुल मिलाकर हम एक ऐसे अनिश्चित भविष्य का सामना करने जा रहे हैं, जिसके बारे में कुछ भी बहुत सटीक कह पाना संभव नहीं है। इसके बावजूद चूहों पर की गई यह स्टडी इंसानों के अस्तित्व के लिए आशा की एक किरण प्रदान करती है और लिंग निर्धारण और विकास में रिसर्च के लिए नए दरवाजे खोलती है।